Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

गांधी एवं नेहरू : एक नई दृष्टि

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गांधी एवं नेहरू : एक नई दृष्टि

 

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इसी प्रकार रामकृष्ण परमहंस ने भी इस्लामिक एवं ईसाई विधि से साधना करके नई अनुभूतियां प्राप्त किया। साधना की दुनिया में अपना और पराया नहीं होता। इसमें साधना और सिध्दि होती है। वशीकरण होता है। अलौकिक शक्तियों को साधना करके वश में किया जाता है। हर धर्म का स्थूल रूप और सूक्ष्म रूप होता है। गांधी को यह पता था।
एक संत के रूप में गांधी ने कई मोर्चों पर भारतीय सभ्यता के सनातन मूल्यों की रक्षा की। परंतु राजनीति के मोर्चे पर उन्हें सीमित सफलता मिली। गांधी में भारत की लोकचेतना की अभिव्यक्ति हुई थी। लोकचेतना की दृष्टि से उनका केवल एक प्रयोग (ब्रहमचर्य व्रत का बुढ़ापे में किया गया प्रयोग) उनके अनुयायियों में विवाद का कारण बना था। दरअसल यह एक तांत्रिक प्रयोग था जिसकी दीक्षा उन्हें नहीं मिली थी। यह एक प्रकार की अनाधिकार चेष्टा थी, खास कर एक वैष्णव के लिए। नेहरू सजग रूप में एक आधुनिक व्यक्ति थे। लेकिन असजग रूप में उनमें काश्मीर शैव दर्शन की लोकचेतना मौजूद थी। भारत की विदेश नीति और उनका गुट निरपेक्ष रहने का निर्णय भारतीय समाज एवं राज्य के लिए एक युगांतरकारी निर्णय था। नेहरू की जगह अगर कोई दूसरा प्रधानमंत्री होता तो शीतयुध्द के उस काल में अमेरिकी प्रस्ताव को स्वीकार लेता और तब भारत का भी वही हाल होता जो आज पाकिस्तान का है। गांधी की तरह नेहरू की भी अपनी सीमा थी परंतु अपनी सीमा के बावजूद नेहरू भारत के लिए एक वरदान साबित हुए। दुर्भाग्य से उनका निष्पक्ष मूल्यांकन अभी नहीं हुआ है। जो लोग नेहरू और माओ की तुलना करते हैं वे यह भूल जाते हैं कि चीन कभी भी विदेशी गुलामी और शिक्षा - संस्कृति के सुनियोजित उपनिवेशीकरण का शिकार नहीं रहा।
चीन की सफलता के पीछे साओलिन टेम्पुल की आध्यात्मिक साधना है। जो लोग चीन की सफलता को कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही और कन्फ्युसियस के दार्शनिक विचारों से प्रभावित आर्थिक उद्यमशीलता तक सीमित कर देते हैं वे चीन को नहीं समझ सकते। पूरे चीन में साओलिन टेम्पुल की श्रृंखला है और साओलिन मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित लोग वहां की सेना और वहां के सांस्कृतिक उद्योग के केन्द्र में हैं। चीन को हराना फिलहाल किसी भी देश के लिए संभव नहीं है।
चीन साओलिन मार्शल आर्ट के पीछे बौध्द साधना है। इसे केवल श्रीकृष्ण की नीति से हराया जा सकता है। श्रीकृष्ण की नीति के तांत्रिक पक्ष को श्री अरबिन्दो ने साधा था, और लोक पक्ष को महात्मा गांधी और तिलक महाराज ने साधा था। श्रीकृष्ण के मथुरा में कोई खास बात नहीं थी। अत: मथुरा जरासंध की सेना के सामने भयभीत रहता था। श्रीकष्ण से पहले द्वारका में भी कोई खास बात नहीं थी। द्वारका जाने के बाद श्रीकृष्ण ने द्वारका को महारथियों की नगरी के रूप में रूपांतरित किया।
गांधी की तरह नेहरू से भी गलतियां हुई थी। उन्होंने दूसरी पंचवर्षीय योजना से गांवों की उपेक्षा शुरू कर दिया था। उन्होंने भारतीय सेना के आधुनिकीकरण पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। वे चीन की नीयत को नहीं समझ पाये। वे काश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गए। उन्होंने वंशवाद शुरू किया। इसके बावजूद एक संतुलित नेतृत्व दिया। विपरीत ध्रुवों के बीच उन्होंने समन्वय साधने की पूरी कोशिश की।

 

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