Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

हिन्दी फिल्मों में समकालीन प्रेम कथाएं

हिन्दी फिल्मों में समकालीन प्रेम कथाएं

 

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    इस फिल्म में भरतमुनि के नाटयशास्त्र और भारतीय रस सिध्दांत तथा नायिका भेद को दरकिनार करके हॉलीवुड की कास्टिंग से प्रेरणा ली गई है। यह अपनी समस्या लेकर आया है। कैटरीना कैफ द्रौपदी नहीं लगती। साराह थॉम्पसन सुभद्रा नहीं लगती। रणबीर कपूर अर्जून नहीं लगता। अर्जून रामपाल युधिष्ठिर की जगह भीम लगता है। प्रकाश झा के महाभारत (राजनीति) में भीम और सुभद्रा की हत्या हो जाती है। कर्ण की भूमिका में अजय देवगण है। परन्तु फिल्म में उसे खलनायक के रूप में विकसित किया गया है। 'राजनीति' 2010 की भारतीय परिस्थिति में विश्वसनीय नहीं लगती। इसमें जिस तरह हत्यायें की जाती हैं और पुलिस कुछ नहीं करती। न्यायालय तथा मीडिया कुछ नहीं करता, सी. बी. आई. कुछ नहीं करती यह सब खलने वाली कमियां हैं। लगता है मानो फिल्म 1989 से 1998 के लालू राबड़ी राज के बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। परन्तु तब अर्जून का चरित्र पूरी तरह अविश्वसनीय हो जाता है। नाना पाटेकर कृष्ण की भूमिका में है। परन्तु आरंभ में वह शकुनि मामा लगता है। कर्ण का पिता इस फिल्म में एक नक्सलवादी क्रांतिकारी है। सूर्यपुत्र कर्ण को नक्सलवादी क्रांतिकारी का बेटा बनाकर प्रकाश झा और अंजुम रजब अली क्या साबित करना चाहते हैं? दरअसल कर्ण के जन्म के पीछे 'राजनीति' में एक अजीब प्रेम कहानी कहने की कोशिश की गई है। 'राजनीति' में पटकथा और कहानी की वापसी अवश्य हुई है परन्तु यह विश्वसनीय भारतीय कहानी नहीं है। इसमें दृष्टिहीनता है। कुल मिलाकर 'राजनीति' मधुर भंडारकर की 'सत्ता' से बेहतर फिल्म नहीं बन पायी है। इसमें न तो वेदव्यास के 'महाभारत' के साथ न्याय हुआ है और न ही हॉलीवुड की महगाथा 'गॉडफादर' के साथ न्याय हुआ है। फिर भी 'राजनीति' को व्यावसायिक सफलता मिली है। प्रकाश झा 'राजनीति' में बहुत महत्वाकांक्षी हो गए थे अत: उन्होंने 'मृत्युदंड', 'गंगाजल' एवं 'अपरण' की तरह एक सरल कहानी कहने की बजाय एक जटिल विषय चुना जिसके साथ न्याय करने का धैर्य वे नहीं रख पाये। कुल मिलाकर यह फिल्म प्रकाश झा की व्यावसायिक चतुराई का प्रमाण है। इसके बावजूद यह 2010 की महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक है। दरअसल हिन्दी सिनेमा में समकालीन प्रेमकथाओं की प्रस्तुति में अभी सांस्कृतिक परिपक्वता का अभाव है। 'राजनीति' की कहानी समकालीन घटनाओं पर भी बनायी जा सकती थी। कैटरीना कैफ का नाम इन्दू है। यह इंदिरा गांधी का घरेलु नाम था। कैटरीना कैफ के चरित्र में सोनिया गांधी का शेड (छाया) है। अर्जून रामपाल के चरित्र में संजय गांधी का शेड है। रणबीर कपूर के चरित्र में राजीव व राहुल गांधी का शेड है। लेकिन अन्य पात्र महाभारत से प्रेरित काल्पनिक चरित्र हैं। अपनी सीमाओं के बावजूद 'राजनीति' एक गंभीर फिल्म है। इसमें दर्शकों के अवचेतन को झंकृत करने का प्रयास है। समकालीन प्रेम कथाओं के दौर में यह अपने सामाजिक संदर्भों की प्रस्तुति गंभीरता से करने का प्रयास करती है। समकालीन प्रेम कथाओं की प्रस्तुति में सनसनी, देहवाद, मजावाद और उपभोक्तावाद का बोलबाला है। पूंजीवादी बाजार और लोभ के युग में प्रेम की सूक्ष्म प्रस्तुति 'राजनीति' की सफलता है।

दूसरी ओर पुनीत मल्होत्रा द्वारा निर्देशित और करण जौहर द्वारा निर्मित 'आय हेट लव स्टोरिज' 1990 के दशक की मशहुर प्रेम कहानियों वाली फिल्मों को संदर्भ बनाकर एक रोमांटिक कॉमेडी है। यह 20 से 30 वर्ष के युवा भारतीयों की ज्यादा प्रतिनिधित्व करने वाली समकालीन प्रेम कथा है। इसकी जड़ में 'कयामत से कयामत तक' (1988), 'मैंने प्यार किया' (1989), 'दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे'(1995), 'कुछ कुछ होता है। (1998), हम दिल दे चुके सनम (1999), कहो न प्यार है (2000) और गदर (2001) जैसी प्रेम कथाओं की पृष्ठभूमि है। 'आय हेट लव स्टोरिज' फिल्म का नायक इमरान खान उपरोक्त फिल्मों के जोनर (शैली) को पसंद नहीं करने का दावा करते हुए प्यार कर बैठता है। इस फिल्म की कथा, पटकथा, संवाद और निर्देशन पुनीत मल्होत्रा की है। पुनीत मल्होत्रा करण जौहर के सहायक निर्देशक रहे हैं। इस फिल्म का नायक भी एक नामी निर्देशक का सहायक निर्देशक है। अत: फिल्म को आत्मकथात्मक भी माना जा रहा है। लेकिन पुनीत मल्होत्रा का कहना है कि यह मूलत: इमरान खान के असली जीवन से प्रेरित प्रेम कथा है जिसे कॉमेडी शैली में (रोमांटिक कॉमेडी) बनाया गया है। पुनीत मल्होत्रा, इमरान खान और सोनम कपूर हम उम्र हैं। ये लोग 20 वर्ष और 30 वर्ष के बीच के युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। बदलते हुए भारत में युवाओं की जीवन दृष्टि में प्रेम के स्वरूप को समझने की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण फिल्म है। इस दृष्टि से इसकी तुलना 2001 की फिल्म 'दिल चाहता है' या 2009 की फिल्म 'लव आजकल' से करके इकीसवीं सदी के प्यार और बीसवीं सदी के अंतिम दशक की प्रेम कहानियों को गहराई से समझने में आसानी हो सकती है।

 

          

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