Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

अमेरिका का नया 'अवतार'

अमेरिका का नया 'अवतार'

 

कैथरीन बिगेलो ने पहली बार बतौर महिला निर्देशक ऑस्कर अवार्ड जीतकर इतिहास रच दिया है। इराक युध्द पर बनी उनकी फिल्म 'द हर्ट लॉकर' ने इस साल जेम्स कैमेरॉन की हाई - फाई फिल्म 'अवतार' को पछाड़कर छह ऑस्कर जीते हैं। 'अवतार' को तीन ऑस्कर मिले। ऑस्कर अवार्ड के 80 साल के इतिहास में सिर्फ तीन महिलाओं को ही सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए नामांकित किया गया है। 'द हर्ट लॉकर को बेस्ट फिल्म, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट ओरिजनल स्क्रीनप्ले, एडिटिंग, साउंड मिक्सिंग और साउंड एडिटिंग का अवार्ड मिला। ऑस्कर का यह पुरस्कार पेचीदा है। अमेरिकी सत्ता कमजोर हो रही है। उसके पास कोई नया विचार और विकल्प नहीं है। वह लगातार अपना प्रभाव और उसे अमल में लाने की इच्छा शक्ति दोनों को खो रही है। अमेरिका अब एक कमजोर हो रही महाशक्ति है जो अपने हित के लिए अपनी सीमाओं से बाहर जाकर लडाई लड़ने के लिए कतई दृढ़प्रतिज्ञ नहीं है और जो हथियारों को दफनाने और शांति स्थापित करने के लिए लालायित है। ओबामा के अमेरिका में अब न तो वह आत्मविश्वास है और न ही महाशक्ति बने रहने की रीढ़ है। कमजोर होते अमेरिका को नए बैसाखियों की जरूरत है। इसी संदर्भ में ऑस्कर का नया पुरस्कार 2009 की फिल्मों के लिए दिया गया है।
इस वर्ष ऑस्कर पुरस्कार अमेरिका समाज की विचारशैली और आंतरिक द्वंद्व को रेखाकित करते हैं। नौ श्रेणियों में नामांकित इराक युध्द पर बनी फिल्म 'द हर्ट लॉकर' को 6 पुरस्कार मिले हैं, जिनमें सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ निर्देशन की अति महत्वपूर्ण श्रेणियां शामिल हैं। बॉक्स ऑफिस पर सफलतम फिल्म 'अवतार' को तकनीकी श्रेणी के केवल तीन ऑस्कर मिले हैं। फिल्म 'टाइटैनिक' के लिए अनेक ऑस्कर जीतने वाले जेम्स कैमरॉन निष्चय ही हताश होंगे। 'द हर्ट लॉकर' में बम निष्क्रिय करने वाले विशेषज्ञ की व्यथा कथा है और 'अवतार' फिल्म में अमेरिका को हृदयहीन आक्रामक देश के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कोई देश स्वयं को खलनायक के रूप में देखना पसंद नहीं करता। देशप्रेम के मामले में तर्क का कोई स्थान नहीं रहता। 
'अवतार' में अमेरिका की सेना प्रकृति का विनाश करते हुए दिखाई गई है और एक पात्र इस आशय की बात भी करता है कि किसी जगह, भले ही वह दूसरा ग्रह ही क्यों नही हो, एक वृक्ष के गिराए जाने पर संसार के सभी वृक्षों की हानि होती है, क्योंकि प्रकृति भी एक अदृष्य डोर से बंधी है। यह तथ्य सभी जानते हैं कि पर्यावरण को सबसे अधिक हानि अमेरिका की जीवन प्रणाली से हो रही है और पर्यावरण बचाने के सारे तौर - तरीके विकासशील देशों पर लादने की चेष्टा हो रही है। पर्यावरण पर कोपेनहेगन में उन्हीं दिनों विचार - विमर्श हुआ जब 'अवतार' का प्रदर्षन था। अत: जेम्स कैमरॉन की 'अवतार' एक तरह से अमेरिका को कठघरे में खड़ा करती है। शायद एकेडमी के वोटर इन बातों से प्रभावित हुए हैं। दूसरी ओर 'द हर्ट लॉकर' में घायल अमेरिकी सिपाही की कथा, उन्हें कहीं तसल्ली दे रही है।
अमेरिका को वियतनाम और कोरिया की तरह इराक और अफगानिस्तान के लिए शर्मसार होना चाहिए। यह संभव है कि अमेरिकी नीति - नियंताओं के दिल के किसी कोने में अपराध बोध भी हो। ऑस्कर हमेशा से राजनीति से प्रभावित होते हैं। 'लगान' की गुणवत्ता के बावजूद एक छोटे देश की कमतर फिल्म को ऑस्कर से नवाजा गया था, क्योंकि उस देश के खिलाफ भी अमेरिका ने अन्याय किया था। बहुत ही संकरे, परन्तु ठोस देशप्रेम से प्रभावित होते हुए भी कई बार वे सार्वजनिक क्षमा याचना की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं, गोयाकि जेब कतरी के लिए मलाल है, परन्तु कत्ल के गुनाह से कोई खास परेशानी नहीं है।
उस देश के खिलाफ भी अमेरिका ने अन्याय किया था। बहुत ही संकरे, परन्तु ठोस देशप्रेम से प्रभावित होते हुए भी कई बार वे सार्वजनिक क्षमा याचना की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं, गोयाकि जेब कतरी के लिए मलाल है, परन्तु कत्ल के गुनाह से कोई खास परेशानी नहीं है।
ज्ञातव्य है कि शेखर कपूर की 'द फोर फैदर्स' भी नकार दी गई, क्योंकि वह आधुनिक आतंकवाद का जन्म इजरायल की स्थापना से प्रारंभ होना प्रदर्षित करती है और साम्राज्यवाद को भी संगठित राष्ट्रीय अपराध ही प्रतिपादित करती है। अमेरिकी बाक्स ऑफिस के भाग्य विधाता बच्चे हैं और उन्हें राजनीति से कोई सरोकार नहीं। उनके लिए 'अवतार' के कौतुक भरे दृष्य ही काफी थे और 'अवतार' एक अजीब सिनेमाई अनुभव रहा। इस ऑस्कर से यह संकेत भी उभरता है कि मानवीय संवदेनाएं वाली फिल्में टेक्नोलॉजी की कोख से जन्मी फिल्मों पर भारी पड़ती हैं। यह स्पष्ट हुआ है कि 'टाइटैनिक' जैसी प्रेमकथा, भले ही उसका निर्माण भी उच्चतम टेक्नोलॉजी के बिना संभव नहीं था, हमेषा विशुद्ध टेक्नोलॉजी वाले सिनेमा पर भारी पड़ेगी। दरअसल सिनेमा में मानवीय संवदेना और करूणा से ऊपर स्थान किसी को नहीं मिल सकता। स्टीवन स्पीलबर्ग और उनके जैसे तमाम फिल्मकारों के कौशल को नमन किया जा सकता है, परन्तु प्यार तो आप चार्ली चैप्लिन से ही करेंगे।

 

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