Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

भाषा

भाषा

 

ज्ञान और सत्ता के बीच भाषा पुल का काम करती है। जब तक आप अपने भीतर और आस-पास के अंधेरे (पार्थिव शक्तियां, तमस) से नहीं लड़ेंगे आपको अपनी भाषा नहीं मिलेगी। भाषा वह माध्यम है जिससे आपके भीतर का ज्ञान और कॉस्मिक सत्ता के बीच संवाद बनता है। वर्ण व्यवस्था के चारों वर्ण केवल कृतयुग में गृहस्थों में मान्य होते हैं। गृहस्थों के लिए कृतयुग में मुक्ति और सृजन के चार मार्ग होते हैं- ज्ञान, इच्छा, कर्म, भक्ति। त्रेता के तीन मार्ग होते हैं- ज्ञान, कर्म, भक्ति। द्वापर में दो मार्ग होते हैं- कर्म और भक्ति। कलियुग में केवल कर्म मार्ग बचता है। कलियुग में वर्ण व्यवस्था समाप्त हो जाती है। सभी लोग वैश्य बन जाते हैं। द्वापर में सभी वैश्य और क्षत्रिय बन जाते हैं। त्रेता में वैश्य, क्षत्रिय और शूद्र बनते हैं। आदर्श वर्णाश्रम धर्म का पालन केवल कृत युग में होता है। लेकिन भाषा भेद के कारण वर्ण व्यवस्था की विसंगति आधुनिक लोगों को समझ में नहीं आती।

 

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