बौध्द धर्म
बौध्द धर्म भारत में छठी सदी ईसा पूर्व हुए नव-धार्मिक आंदोलन की प्रतिष्ठित परिणति है। इसके मूल में भारत का पारंपरिक धर्म है। इसका अस्तित्व गौतम बुध्द के उपदेशों पर आधारित है। भगवान बुध्द ने खुद घोषणा की थी कि वे कोई नया धर्म नहीं दे रहे हैं। उन्होंने केवल एक नया मार्ग दिया। पहले से उपलब्ध वैदिक और श्रमण परंपराओं के बीच एक पुल बनाया। एक नई व्यवस्था दी। सनातन धर्म को एक नया स्वरूप एक नई पद्धति एवं कुछ नई तकनीक दी। कलिकाल में सनातन धर्म के तीन शलाका पुरूष हैं- भगवान श्रीकृष्ण, भगवान महावीर एवं भगवान बुध्द। यूरोपीय विद्वान हीगेल की भाषा में बात करें तो भगवान श्रीकृष्ण का श्रीमद् भगवद्गीता में वर्णित उपदेश 'स्थापना' (थीसिस) है, भगवान महावीर का जिन-सूत्र में वर्णित उपदेश 'प्रति-स्थापना' (एण्टी-थीसिस) है और भगवान बुध्द का धम्मपद एवं जातक-कथाओं में वर्णित उपदेश 'पुनर्स्थापना' (सिनथेसिस) है। कुमारस्वामी 'पुनर्स्थापना' को पुनर्रचना (रिमेनिफेस्टेसन ) कहते थे। हजारी प्रसाद द्विवेदी का प्रियशब्द 'पुनर्नवता' थी। बौध्द मत की घोषणा को त्री-आश्रय या तीन रत्न के रूप में जाना जाता है, जिसमें बुध्द, धम्म व संघ आते हैं। बुध्द एक बोधिसत्व प्राप्त शिक्षक (उपदेशक) हैं। कोई भी इन तीन आश्रयों को तीन बार उच्चारित करके बौध्द बन सकता है, उदाहरणस्वरूप मैं बुध्द की शरण में जाता हूँ (बुध्दं शरणम् गच्छामि), मैं धम्म की शरण में जाता हूँ (धम्मं शरणम् गच्छामि), मैं संघ की शरण में जाता हूँ (संघम् शरणम् गच्छामि)। धम्म के चार अर्थ है :- (1) परम सत्य, (2) सम्यक आचरण (3) धर्म सिध्दांत (4) अनुभव का अनंत स्वरूप। प्रथम तीन अर्थों को हिन्दू धर्म में देखा जाता है लेकिन चौथा बौध्द धर्म की विशिष्टता है। सनातन धर्म की नई अभिव्यक्ति है। बौध्द धर्म के अनुयायी गौतम बुध्द के बताए चार महान सत्यों में विश्वास करते है। पहले के अनुसार संसार में 'पीड़ा' व्याप्त है। दूसरा पीड़ा का कारण (इच्छा) बताता है। तीसरे महान सत्य के अनुसार पीड़ा के कारण को दूर किया जा सकता है। इन कारणों को दूर करने के लिए विस्तृत उपायों की व्याख्या चतुर्थ महान सत्य में मिलती है। बौध्द धर्म में अष्टांगिक मार्ग की विवेचना की गई है जिसमें सम्यक दृष्टि, सम्यक आकांक्षा, सम्यक वाक्, सम्यक कर्म, सम्यक जीविका, सम्यक प्रयत्न, सम्यक मन: स्थिति और सम्यक चिंतन आते हैं। ये अष्ट मार्ग निर्वाण की तरफ ले जाते हैं जिससे सभी पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है। चार महान सत्य एवं अष्ट मार्ग निर्देशक तत्त्व हैं । बौध्द धर्म के मुख्य ग्रंथों में 'विनय पिटक' (अनुशासन की व्याख्या), 'सुत्त पिटक' (उपदेशों की व्याख्या) और 'अभिधम्म पिटक' (धर्मनीतियों की व्याख्या) हैं। बौध्द धर्म के चार प्रमुख स्वरूप हैं (क) स्थविरयान (ख) महायान (ग) वज्रयान या तंत्र (घ) जेन। भारत के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में इसके विभिन्न स्वरूप प्रचलित हैं। भारत के बाहर बौध्द धर्म का प्रभाव तिब्बत, श्रीलंका, जापान, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, यूरोपीय संघ एवं संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में है। भारत में सबसे महत्तवपूर्ण बौध्द त्यौहार बुध्द पूर्णिमा है। अनेक बौध्द कुछ अन्य त्यौहार भी मनाते हैं। अनेक बौध्द परिवारों द्वारा हिन्दू त्यौहार जैसे होली, दीपावली और मकर संक्रांति भी मनाए जाते हैं। बाबा साहब अंबेडकर बौध्द धर्म को हिन्दू संस्कृति का विकास मानते थे।
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