Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

महात्मा गांधी का हिन्द स्वराज

हिन्द स्वराज की प्रासंगिकता

 


महात्मा गांधी का हिन्द स्वराज

गुलाम भारत में संप्रभुता एवं स्वावलंबन के सूत्रो की खोज

खण्ड-ग
भारतीय सभ्यता के सूत्र 
अंश-अ
हिन्दुस्तान की गुलामी एवं आजादी के सूत्र      
हिन्दुस्तान क्यों हारा?

सातवें अधयाय का शीर्षक है 'हिन्दुस्तान कैसे हारा?' अथवा, हिन्दुस्तान अंग्रेजों के हाथ में कैसे गया? पाठक पूछता है कि अगर आज की सभ्यता नुकसानदेह है, एक रोग है, तो ऐसी सभ्यता में फंसे हुए अंग्रेज हिन्दुस्तान को अपने कब्जे (अधिाकार) में कैसे ले सके? इसमें वे कैसे बने रह पाये? इस पर गांधीजी उत्तार देते हैं कि हिन्दुस्तान अंग्रेजों ने हमसे छीना नहीं है, बल्कि हमने उन्हें उपहार में दिया है। हिन्दुस्तान में वे अपने बल से नहीं टिके हैं, बल्कि हमने उन्हें टिका रखा है। हमारे देश में वे दरअसल व्यापार के लिए आये थे। वे बेचारे तो राज करने का इरादा भी नहीं रखते थे। कंपनी के लोगों की मदद किसने की? उनका माल कौन बेचता था? कंपनी बहादुर को बहादुर किसने बनाया? यह सब हम ही करते थे। जल्दी पैसा पाने के उद्देश्य से हम उनका स्वागत करते थे। हम उनकी मदद करते थे। मुझे भांग पीने की आदत हो और भांग बेचनेवाला मुझे भांग बेचे, तो कसूर बेचने वाले का है या हमारा खुद का? एक बेचने वाले को भगा देंगे तो क्या दूसरे मुझे भांग नहीं बेचेंगे? अंग्रेज व्यापारियों को हमने बढ़ावा दिया तभी वे हिन्दुस्तान में अपना पैर फैला सके। जब हमारे राजा लोग आपस में झगड़ने लगे तब उन्होंने कंपनी बहादुर से मदद मांगी। कंपनी बहादुर व्यापार और लड़ाई के काम में कुशल थी। उसमें उसे नीति-अनीति की अड़चन नहीं थी। व्यापार बढ़ाना और पैसा कमाना, यही उसका धांधा था। उस वक्त हिन्दू और मुसलमान के बीच में बैर भी था। कंपनी को उससे मौका मिला। इस तरह हमने कंपनी के लिए ऐसा संयोग पैदा किया जिससे हिन्दुस्तान पर उनका अधिाकार हो गया। अत: हमने अंग्रेजों को हिन्दुस्तान पर कब्जा करने दिया। जिस तरह हमने हिन्दुस्तान उन्हें शासन करने के लिए उपहार स्वरूप दिया वैसे ही हम लोग अब भी हिन्दुस्तान उनके शासन में रहने देते हैं। हिन्दुस्तान को रखने के लिए तलवार या फौज किसी काम में नहीं आ सकती; हम लोग खुद ही उन्हें यहाँ शासक के रूप में रहने देते हैं। वे जिस देश को अपने काबू में रखते हैं उसे व्यापारिक फायदे के लिए रखते हैं। उनकी फौजें और जंगी बेड़े सिर्फ व्यापार की रक्षा के लिए हैं। नेपोलियन ने अंग्रेजों को व्यापारी प्रजा यूं ही नहीं कहा है। पैसा उनका खुदा बन गया है। अंग्रेजों को अगर यहाँ रहने में व्यापारिक फायदा बंद हो जाये तो उनका यहाँ रहना संभव नहीं है। परंतु समस्या यह है कि हमें उनका व्यापार पसंद आता है। वे चालबाजी करके हमें रिझाते हैं और रिझाकर हमसे काम लेते हैं। हम आपस में झगड़कर उन्हें ज्यादा बढ़ावा देते हैं। उनके हथियार तो बिलकुल बेकार हैं। अंग्रेज अपने माल के लिए सारी दुनिया को अपना बाजार बनाना चाहते हैं। परंतु यह सच है कि वे ऐसा नहीं कर सकेंगे। 

इस अधयाय में वे पिछले अधयाय के अपने तर्क को आगे बढ़ाते हैं। उनका कहना है कि हमलोग अपनी पारंपरिक संस्कृति की आन्तरिक कमियों या समाज व्यवस्था की रणनीतिक कमजोरियों के कारण या अंग्रेजी संस्कृति की आन्तरिक शक्ति या उनकी समाज व्यवस्था की आन्तरिक गुणवत्ता के कारण नहीं हारे हैं बल्कि हमारे प्रभु वर्ग और उभरते हुए मधय वर्ग के लोभ और लालच के कारण बिना संघर्ष किये एक स्वैच्छिक समझौता के तहत हारे हैं। अंग्रेजी राज एक अधार्मिक, अनैतिक एवं चालबाज सभ्यता की उपज है जो लोभ, लालच और अनैतिक समझौतों का प्रचार करती है और एक साजिश के तहत हमारे शासक एवं व्यापारी वर्ग को रिझाकर अपना उल्लू सीधा करती है। गांधीजी का यह मानना है कि अंग्रेज लोग मूलत: स्वार्थी व्यापारी बन गये हैं और जिस दिन हमलोगों में स्वाभिमान जाग गया तथा हमलोगों ने उनके व्यापारिक लोभ में सहयोग करना बंद कर दिया उस दिन वे लोग इस देश को छोड़कर जाने पर खुद ही मजबूर हो जायेंगें। गांधीजी नेपोलियन से सहमत हैं कि अंग्रेज लोग व्यापारी प्रजा हैं। अत: अगर उनको यहाँ नुकसान होने लगेगा तो वे अपनी फौज समेत बिना लड़े चले जायेंगे। साउथ अफ्रीका के अनुभवों के बल पर गांधीजी लिखते हैं कि वे जिस देश को काबू में रखते हैं उसे व्यापारिक फायदे के लिए रखते हैं वर्ना उन्हें छोड़ देते हैं। व्यापार बढ़ाना और पैसा कमाना उनके जीवन का परम उद्देश्य है इसमें उन्हें नीति-अनीति की अड़चन नहीं आती। अत: अंग्रेजों को भगाने या उनसे लड़ने की जगह अगर हमलोग अपने लोभ-लालच पर नियंत्रण करने एवं अपनी लड़ाई खुद सुलझाने पर केन्द्रित करें तो अंग्रेज तो इस देश को छोड़कर भागेंगे ही बाद में भी कोई विदेशी शक्ति, कम्पनी, सेना या सत्ता इस देश में आने की कोशिश नहीं करेगी।

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