Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

महात्मा गांधी का हिन्द स्वराज

हिन्द स्वराज की प्रासंगिकता

 


महात्मा गांधी का हिन्द स्वराज

गुलाम भारत में संप्रभुता एवं स्वावलंबन के सूत्रो की खोज

खण्ड-ग
भारतीय सभ्यता के सूत्र 
अंश-अ
हिन्दुस्तान की गुलामी एवं आजादी के सूत्र      
इटली और हिन्दुस्तान

 

इटली की दशा और हिन्दुस्तान की दशा में फर्क है। आधुनिक इटली में महानता के दो बड़े प्रतीक हैं- मैजिनी एवं गैरीबाल्डी। मैजिनी महात्मा थे। गैरीबाल्डी बड़े योध्दा थे। मैजिनी ने मनुष्य-जाति के कर्तव्य के बारे में लिखते हुए यह बताया है कि हर एक को स्वराज भोगना सीख लेना चाहिए। गैरीबाल्डी ने हर इटालियन के हाथ में हथियार दिये और हर इटालियन ने हथियार लिये। उन दिनों इटली और ऑस्ट्रिया के बीच स्वराज के लिए संर्घष था। इटली वाले ऑस्ट्रिया की प्रभुता नकार कर स्वराज पाना चाहते थे। हिन्दुस्तान भी अंग्रेजी राज से अपना छुटकारा चाहता है परंतु हिन्दुस्तानियों एवं अंग्रेजों की सभ्यतायें एक दूसरे से गुणात्मक रूप से अलग हैं जबकि इटली और आस्ट्रिया के बीच सभ्यता का भेद नहीं था।

इमेन्युअल, कावूर और गैरीबाल्डी के विचार से इटली का अर्थ था इमेन्युअल या इटली का राजा और उसके दरबारी। मैजिनी के विचार से इटली का अर्थ था इटली के लोग-- उसके किसान। इमेन्युअल वगैरह तो प्रजा के नौकर थे। गांधीजी कहते हैं कि मैजिनी की अवधारणा वाली इटली तो अब तक गुलाम है। दो राजाओं के बीच शतरंज की बाजी लगी थी; इटली की प्रजा तो सिर्फ प्यादा थी, और है। आस्ट्रिया के जाने से इटली को क्या लाभ हुआ? नाम का ही लाभ हुआ। जिन सुधारों के लिए जंग मचा वे सुधार नहीं हुए, प्रजा की हालत नहीं सुधारी।

गांधीजी अपने पाठक से पूछते हैं कि ''हिन्दुस्तान की ऐसी दशा करने का तो आपका इरादा नहीं ही होगा। मैं मानता हूँ कि आपका विचार हिन्दुस्तान के करोड़ों लोगों को सुखी करने का होगा, यह नहीं कि आप या मैं राजसत्ता ले लें। अगर ऐसा है तो हमें एक ही विचार करना चाहिए। वह यह कि प्रजा स्वतंत्र कैसे हो। गांधीजी कहते हैं कि मेरा स्वदेशाभिमान मुझे यह नहीं सिखाता कि देशी राजाओं के मातहत जिस तरह प्रजा कुचली जाती है उसी तरह उसे कुचलने दिया जाय। मुझमें बल होगा तो मैं देशी राजाओं के जुल्म के खिलाफ और अंग्रेजी जुल्म के खिलाफ अपनी  सामर्थ्य भर संघर्ष करूंगा। लेकिन मेरा संघर्ष गैरबाल्डी के संघर्ष की तरह का संघर्ष नहीं होगा चूँकि जब हिन्दुस्तान को इटली की तरह हथियार मिलेगा तभी वह इटली की तरह संघर्ष कर सकता है। अंग्रेज गोला-बारूद से पूरी तरह लैस हैं, इससे डर नहीं लगता। परंतु हिन्दुस्तानियों के पास अंग्रेजों से लड़ने के लिए हथियार आयेगा कहाँ से? और किस तरह? और अगर उनके हथियारों से उन्हीं के खिलाफ लड़ना हो तो इसमें कितने साल लगेंगे? और तमाम हिन्दुस्तानियों को हथियारबन्द करना तो हिन्दुस्तान को यूरोप बनाने जैसा होगा। अगर ऐसा हुआ तो आज यूरोप का जो हाल है वैसे ही हिन्दुस्तान के भी हो जायेंगे। संक्षेप में, हिन्दुस्तान को भी यूरोप की सभ्यता अपनानी होगी। अगर ऐसा ही होनेवाला है तो अच्छी बात यह होगी कि जो अंग्रेज उस सभ्यता की व्यवस्था करने में कुशल हैं, उन्हीं को हम यहाँ रहने दें। उनसे इटली की तरह थोड़ा बहुत झगड़ कर हम कुछ हक तो पायेंगे, कुछ नहीं भी पायेंगे और अपने दिन गुजारेंगे। परंतु उससे अपने पारंपरिक मानदंडों पर सभ्यता तो खो ही देंगे और एक प्रकार का राक्षसी जीवन यापन करने लगेंगे।''

इस पर पाठक गांधीजी से कहता है कि आप तो बहुत आगे बढ़ गये। सबको हथियारबन्द होने की जरूरत नहीं। हम पहले तो कुछ अंग्रेजों का खून करके आतंक फैलायेंगे। फिर जो थोड़े लोग हथियारबन्द होंगे, वे खुल्लमखुल्ला लड़ेंगे। उसमें पहले तो बीस पचीस लाख हिन्दुस्तानी जरूर मरेंगे। लेकिन आखिर हम देश को अंग्रेजों से जीत लेंगे। हम गुरिल्ला लड़ाई लड़कर अंग्रेजों को हरा देंगे। पाठक की बात पर दुखी होकर गांधीजी कहते हैं कि ''अंग्रेजों का खून करके हिन्दुस्तान को छुड़ायेंगे, ऐसा विचार करते हुए आपको त्रास क्यों नहीं होता? खून तो हमें अपना करना चाहिए; क्योंकि हम नामर्द बन गये हैं, इसलिए हम खून का विचार करते हैं। ऐसा करके आप किसे आजाद करेंगे? खून करके जो लोग राज करेंगे, वे प्रजा को सुखी नहीं बना सकेंगे। डर से मिली हुई चीज जब तक डर बना रहता है तभी तक टिक सकती है।'' अत: गांधीजी हिन्दुस्तान में स्वराज की साधाना इटली की विधिा से नहीं करना चाहते। वे सत्याग्रह और अहिंसा के हथियार से हिन्दुस्तान की प्रजा का डर भेदन करना चाहते हैं ताकि हर हिन्दुस्तानी स्वराज की अनुभूति करके स्वालंबी हो सके और अंग्रेजी राज का व्यवसायिक आधार नष्ट हो सके।

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