गुलाम भारत में संप्रभुता एवं स्वावलंबन के सूत्रो की खोज खण्ड-ग
गांधीजी की तीसरी चिंता यह है कि कुछ लोगों को अभी भी भ्रम है कि अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान में शांति एवं सुव्यवस्था कायम किया है और अंग्रेज नहीं होते तो ठग, पिंडारी, भील वगैरह आम आदमियों को जीना मुश्किल कर देते। गांधीजी इसे भी अंग्रेजी राज प्रेरित आधुनिक कुप्रचार मानते हैं। अगर सचमुच ठग, पिंडारी, भील वगैरह इतने खतरनाक होते तो अबतक हिन्दुस्तानी प्रजा का जड़मूल से कभी का नाश हो जाता चूंकि ये लोग तो हिन्दुस्तान में सदियों से रह रहे हैं जबकि अंग्रेजी राज तो 1757 से पहले नहीं था। उपरोक्त प्रकरण में गांधीजी ने जिस ओर मात्र संकेत किया है उस पर समकालीन इतिहासकारों ने विस्तार से प्रकाश डाला है। दरअसल अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीतियों और दमन के फलस्वरूप ही उपरोक्त लोगों की स्वाभाविक जीविका का साधान (खेत और जंगल) उनसे छीन लिया गया और उन्हें लाचारी में अपना अस्तित्व बचाने के लिए दु:साहसी कदम उठाना पड़ा। खैर। गांधीजी मात्र इतना ही कहते हैं कि अंग्रेजी राज की ''शांति'' से हम नामर्द, नपुंसक और डरपोक बन गये हैं। वे कहते हैं कि हम कमजोर और डरपोक बनें; इससे तो भीलों के तीर कमान से मरना उन्हें ज्यादा पसंद है। हिन्दुस्तानी नामर्द कभी नहीं थे। जिस देश में पहाड़ी लोग बसते हैं, जहाँ बाघ-भेड़िये रहते हैं, उस देश में रहने वाले अगर सचमुच डरपोक हों तो उनका नाश ही हो जाये। खेतों में हमारे किसान आज भी निर्भय होकर सोते हैं। बल तो निर्भयता में है; बदन पर मांस के लोंदे होने में बल नहीं है। भील, पिंडारी और ठग ये सब हमारे ही देशी भाई हैं। उन्हें जीतना हम लोगों का काम है। जब तक हमारे ही भाई का डर हमको रहेगा, हम स्वराज नहीं प्राप्त कर सकेंगे।
|