गुलाम भारत में संप्रभुता एवं स्वावलंबन के सूत्रो की खोज खण्ड-ग
गांधीजी की दूसरी चिंता यह है कि आधुनिक लोग हिन्दुस्तान पर यह तोहमत लगाते हैं कि हम आलसी हैं और गोरे (यूरोपीय/अंग्रेज) लोग मेहनती और उत्साही हैं। बहुत दुख के साथ गांधीजी यह जोड़ते हैं कि दुर्भाग्य से हम हिन्दुस्तानी लोगों ने इस झूठी तोहमत को सच मान लिया है और आधुनिक मानदंड़ों पर खरा उतरने के लिए अनावश्यक रूप से गलत दिशा में प्रयत्नशील हो गये हैं। हिन्दू, मुस्लिम, जरथोस्ती, ईसाई सभी धर्म सिखलाते हैं कि हमें सांसारिक स्वार्थ की बातों के बारे में यथासंभव उदासीन भाव रखना चाहिए और धार्मिक परमार्थ के बारे में उत्साही रहना चाहिए। हमें अपने सांसारिक लोभ, लालच और स्वार्थ की हद बांधानी चाहिए और आत्म विकास एवं सांस्कृतिक परिष्कार पर ज्यादा धयान केन्द्रित करना चाहिए। गांधीजी जोर देकर कहते हैं कि जैसा पाखंड आधुनिक सभ्यता में पाया जाता है उसकी तुलना में सभी धार्मों में पाया जाने वाला व्यावहारिक पाखंड कम खतरनाक और कम दुखदायी होता है। वे स्वीकार करते हैं कि धर्म के नाम पर हिन्दू मुसलमान लड़े, धर्म के नाम पर ईसाइयों में बड़े-बड़े युध्द हुए। धर्म के नाम पर हजारों बेगुनाह लोग मारे गये। उन्हें जला दिया गया। उन पर बड़ी-बड़ी मुसीबतें आयीं। तब भी, वे बड़ी आस्था एवं आत्मविश्वास से कहते हैं कि यह सब तुलनात्मक रूप से आधुनिक सभ्यता के दुख से ज्यादा बरदाश्त करने लायक है चूंकि धार्मिक पाखंडों को कोई सही नहीं समझता। सभी इसको पाखंड ही समझते हैं। ऐसे लोग जो पाखंडी नहीं है इसमें नहीं फंसते। इसका असर मूलत: पाखंडियों पर ही पड़ता है। फलस्वरूप इसका असर हमेशा के लिए बुरा नहीं रहता। परंतु आधुनिक सभ्यता के पाखंड को लोग विकास और प्रगति समझते हैं। लोग इसके पाखंड में बलिदान के भाव से कूद पड़ते हैं। फिर वे न तो दीन के रहते हैं और न दुनिया के। उनका तो लोक और परलोक दोनों बिगड़ जाता है। वे सच बात को बिलकुल भूल जाते हैं। आधुनिक सभ्यता एक प्रकार का मीठा जहर है। उसका असर जब हम जानेंगे तब पुराने वहम और धार्मिक पाखंड इसके मुकाबले मीठे लगेंगे। आधुनिक सभ्यता के वहमों और पाखंडों से आधुनिक सभ्यता में आस्था रखने वाले लोगों को लड़ने का कोई कारण नजर नहीं आता। जबकि सभी धार्मों के भीतर धर्म और पाखंड के बीच धार्मिक संघर्ष सदैव चलता रहा है।
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