Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

महात्मा गांधी का हिन्द स्वराज

हिन्द स्वराज की प्रासंगिकता

 


महात्मा गांधी का हिन्द स्वराज

गुलाम भारत में संप्रभुता एवं स्वावलंबन के सूत्रो की खोज

खण्ड-ग
भारतीय सभ्यता के सूत्र 
अंश आ
अंग्रेजी राज में हिन्दुस्तान की दशा   
आधुनिक सभ्यता की तकनीक

 

इसी क्रम में अगले (नवें) अधयाय में अंग्रेजी राज में हिन्दुस्तान की दशा की व्याख्या करते हुए गांधीजी रेलगाड़ियों के महत्तव पर प्रकाश डालते हैं। हिन्दुस्तान की तत्कालीन दशा के बारे में गांधीजी की चौथी चिंता यह है कि वास्तव में जिन चीजों ने हिन्दुस्तान को रंक बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभायी है उसे ही हम लोगों ने लाभकारी मानना शुरू कर दिया है। गांधीजी साफ-साफ कहते है कि हिन्दुस्तान को रेलों ने, वकीलों ने और ऐलोपैथिक डॉक्टरों ने कंगाल बना दिया है। अगर हम समय पर सावधान नहीं होंगे तो चारों ओर से घिर कर बरबाद हो जायेंगे। उनकी दृष्टि में आधुनिक सभ्यता एक अदृश्य रोग है। इसका नुकसान मुश्किल से मालूम हो सकता है। उदाहरण के लिए, रेलवे की आधुनिक तकनीक को लीजिये। गांधीजी कहते हैं कि ''अगर रेल न हो तो अंग्रेजों का काबू हिन्दुस्तान पर जितना है उतना तो नहीं ही रहेगा। रेल से महामारी फैली है। अगर रेलगाड़ी न हो तो कुछ ही लोग एक जगह से दूसरी जगह जायेंगे और इस कारण संक्रामक रोग सारे देश में नहीं पहुंच पायेंगे। रेल से अकाल बढ़े हैं क्योंकि रेलगाड़ी की सुविधा के कारण लोग अपना अनाज बेच डालते हैं। जहाँ महंगाई हो वहाँ अनाज खिंच जाता है, लोग लापरवाह बनते हैं और उससे अकाल का दुख बढ़ता है। रेल से दुष्टता बढ़ती है। बुरे लोग अपनी बुराई तेजी से फैला सकते हैं। हिन्दुस्तान में जो पवित्र स्थान थे, वे अपवित्र बन गये हैं। पहले लोग बड़ी मुसीबत से वहाँ जाते थे। ऐसे लोग वहाँ सच्ची भावना से ईश्वर को भजने जाते थे; अब तो ठगों की टोली सिर्फ ठगने के लिए वहाँ जाती है। समाज में जो अच्छा होता है वह धीरे चलता है। उसके मन में स्वार्थ नहीं रहेगा वह जल्दी नहीं करेगा। वह जानता है कि आदमी पर अच्छी बात  का असर डालने में बहुत समय लगता है। बुरी बात ही तेजी से बढ़ सकती है। अत: रेलगाड़ी हमेशा दुष्टता का ही फैलाव करेगी।''

इस अधयाय का मूल उद्देश्य आधुनिक सभ्यता के तकनीकी आधार की समालोचना है। इसमें गांधीजी कहना चाहते हैं कि किसी भी सच्ची, अच्छी ओर कल्याणकारी सभ्यता का आधार धर्म, नीति और मूल्य होते हैं तथा यंत्रों, तकनीकों एवं मशीनों का उपयोग मात्र साधान के रूप में होता है। जबकि आधुनिक सभ्यता का आधार मूल्य, नीति और धर्म के बदले रेलवे जैसा आधुनिक तकनीक वाला मशीन बन गया है। यहाँ रेल मात्र एक मशीन न होकर आधुनिक यातायात के सभी प्रमुख साधानों बस, ट्रक, हवाई जहाज आदि का सांस्कृतिक-तकनीकी प्रतीक बन गया है। यहाँ गांधीजी तकनीक की सांस्कृतिक उपयुक्तता का प्रश्न उठाते हैं। उनका मानना है कि मनुष्य के जीवन, आकांक्षा, सुख-दुख, सफलता-असफलता, हानि-लाभ, प्रगति-पतन जैसे मूल विषयों को जब मूल्यों के स्थान पर तकनीक परिभाषित करने लगते हैं तब सभ्यता पर असली संकट आता है। तब असली बर्बादी शुरू होती है। उदाहरण के लिए, रेलवे जैसे आधुनिक जन-संचार के साधानों ने तीर्थयात्रा और तीर्थ की अवधारणा एवं परिभाषा ही बदल दी है। तीर्थ को अब पर्यटन (टूरिज्म) में रूपांतरित कर दिया गया है। अंग्रेजी राज से पहले तीर्थयात्रा पर लोग मात्र कौतूहल वश एक नई जगह सैर-सपाटे के लिए नहीं जाते थे बल्कि आत्म-परिष्कार, आत्म-शुध्दि और ब्रह्म-साक्षात्कार के लिए जरूरी पात्रता बढ़ाने, नैतिक-बल प्राप्त करने और पवित्रता के भाव से खुद को भरने के लिए जाते थे। इसमें तीर्थ-स्थान और तीर्थयात्रा का दुर्गम, दुरूह, कष्टसाधय, समय-साधय और श्रमसाधय होना मददगार एवं उपयोगी होता था। परंतु रेलवे जैसे आधुनिक साधानों ने तीर्थयात्रा को सुविधाजनक, आरामदायक और मनोरंजक बनाकर आसान बना दिया। इसमें अब बहुत कम समय लगता है, फलस्वरूप, इतनी भीड़-भाड़ होने लगी है कि इसका सारा उद्देश्य ही खत्म हो गया है। इससे पवित्र स्थान अपवित्र होने लगे हैं और समाज में पवित्रता के स्रोत सूखने लगे हैं।

उसी प्रकार से जब यातायात के साधान इतने सरल एवं सुविधा संपन्न नहीं होते थे तब गाँव और क्षेत्र के ज्यादातर साधान उसी गाँव या क्षेत्र की आवश्यकता पूर्ति के काम में लगाया जाता था। उस गाँव या क्षेत्र की आवश्यकता से अधिाक संसाधान ही बाहर भेजा जाता था। तब स्वदेशी और स्वावलंबन का भाव सीमित तकनीक से बल पाता था। तब जीविका को उपासना की एक विधिा माना जाता था। हर व्यक्ति अपने काम या व्यापार या श्रम के द्वारा प्रभु-प्राप्ति या आत्म-साक्षात्कार करने की कोशिश करता था। लेकिन अब आर्थिक प्रयासों का पवित्रता, ईश्वर या समाज सेवा से सम्बन्धा कम और व्यक्तिगत स्वार्थ, लोभ और लालच से ज्यादा हो गया है। अब सूखा, बाढ़ और अकाल की स्थिति में भी अनाज और अन्य संसाधानों का रेलवे एवं ट्रकों द्वारा शुध्द मुनाफे के लिए दूसरे क्षेत्रों में ढुलाई होती रहती है। इससे उस क्षेत्र के जरूरतमंदों की समस्यायें बढ़ जाती हैं।

गांधीजी के इस तर्क में दम तो है परंतु पिछले अधयायों के तर्क से थोड़ी असंगति भी दिखती है। एक तरफ गांधीजी यह मानते हैं कि हम अंग्रेजों की श्रेठता के कारण नहीं अपने लोभ लालच औरर् ईष्या-द्वेष के कारण गुलाम बने। दूसरी ओर वे यह मानते हैं कि रेलवे जैसी तकनीक के कारण हमारे तीर्थस्थानों की पवित्रता नष्ट हुई है। रेलवे-ट्रकों के कारण अकाल के कष्ट एवं कालाबाजार बढ़ा है। दरअसल यहाँ भी मूल कारण हमारे लोभ-लालच, र्ईष्या-द्वेष ही है। रेलवे के कारण लोभी-लालची, सुविधाभोगी व्यक्तियों और सुविधाभोगी स्वभाव को मौका मिल जाता है। अपने लोभ-लालच, स्वार्थ और सुविधा के कारण ही हमलोग रेलवे जैसी तकनीक और ब्रिटिश रीति-रिवाज, रहन-सहन, कानून और परंपरा को अपनाने लगे हैं। गांधीजी को लगता है कि अंग्रेज यदि इस देश को छोड़कर चले भी जाते तब भी रेलवे आदि जैसे अंग्रेजों द्वारा विकसित तकनीक और उनके कोर्ट-कचहरी, वकील, जज तथा ऐलोपैथिक चिकित्सा पध्दति ज्यादातर लोग नहीं छोड़ पायेंगे। और तब अंग्रेजों की अनुपस्थिति में अंग्रेजी शासन के वाहकों का शासन इस देश पर बना रहेगा।

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