भारत में मुस्लिम विवाह
मुस्लिम विवाह को 'निकाह' कहा जाता है। अवधारणा के स्तर पर मुस्लिम विवाह एक सामाजिक समझौता या नागरिक समझौता है। परंन्तु व्यवहारिक स्तर पर भारत में मुस्लिम विवाह भी धार्मिक है। भारतीय मुसलमानों में अन्य समुदायों की तुलना में तलाक की दर अधिक है। पति-पत्नी के बीच वैवाहिक संबंध की तुलनात्मक स्थिरता भारतीय संस्कृति की साझी विरासत है। भारत में मुस्लिम विवाह अरब दुनिया तथा अन्य स्थानों की तुलना में ज्यादा स्थायी पाया गया है।
विवाह में चार भागीदारों का होना आवश्यक है :- (1) दूल्हा (2) दुल्हन (3) काजी, तथा (4) गवाह (दो पुरूष या चार स्त्री गवाह) जो सामाजिक धार्मिक कानूनी समझौता (निकाह) के साक्षी होते हैं।
भारत में विवाह की रस्म हिन्दुओं तथा मुसलमानों दोनों समुदायों में दुल्हन के घर पर ही करने की प्रथा है। एक क्षेत्र के हिन्दुओं तथा मुसलमानों में कई प्रथायें समान रूप से मानी जाती हैं। उदाहरण के लिए केरल के मोपला मुसलमानों में 'कल्याणम' नामक हिन्दू कर्मकाण्ड पारंपरिक निकाह का आवश्यक अंग माना जाता है। चचेरे भाई बहनों का विवाह मुसलमानों में पसंदीदा विवाह माना जाता है। विञ्वा पुनर्विवाह मुस्लिम समुदाय में निषिध्द नहीं है। मुसलमानों में दो प्रकार के विवाह की अवधरणा है। 'सही' या नियमित तथा 'फसीद' या अनियमित। अनियमित विवाह निम्नलिखित स्थितियों में हो सकता है : क. यदि प्रस्ताव करते समय या स्वीकृति के समय गवाह अनुपस्थित हो, ख. एक पुरूष का पांचवाँ विवाह ग. एक स्त्री का 'इद्दत' की अवध में किया गया विवाह। (इद्दत की अवध तलाकशुदा के लिए तीन माह और विधवा के लिए चार माह दस दिन है जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है। कि स्त्री गर्भवती नहीं है)। घ. पति और पत्नी के धर्म में अंतर होने पर।
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