Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

नातेदारी का समाजशास्त्र

नातेदारी का समाजशास्त्र

 

विवाह, परिवार एवं नातेदारी समाजशास्त्र में सर्वाधिक अध्ययन की गई संस्थाओं में से है। नातेदारी शब्द को संक्षेप में 'नातेदारी एवं विवाह' के लिए सम्मिलित रूप में प्रयोग किया जाता है। पारिवारिक संबंध रक्तसंबंध एवं विवाह द्वारा स्थपित होते हैं। अंग्रेजी मे इसके लिए कैंसग्विन तथा विवाह संबंधियों के लिए 'एफाइन' शब्द है। इस प्रकार माता-पिता और बच्चों के बीच रक्त संबध एवं पति-पत्नी के संबंध वैवाहिक होते हैं। विवाह परिवार की आधारशिला है जबकि परिवार सामाजिक जीवन की आधारशिला है। परिवारिक एवं वैवाहिक संबंधों का संयोग नातेदारी का निर्माण करता है।

     भारतीय समाज कई धार्मिक एवं सांस्कृतिक समूहों में बंटा हुआ है। फलस्वरूप विवाह, एवं नातेदारी के मामलों में काफी विविधताएँ है। हर धार्मिक समूह की विवाह की दृष्टि से अपनी प्रथाएँ एवं प्रणालियाँ हैं। विवाह एवं नातेदारी क्षेत्रीय संस्कृतियों के पक्ष हैं। अत: अखिल भारतीय स्तर पर इनका सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता तथापि भारत में विभिन्न प्रकार की विवाह पध्दतियों से भी प्राय: एक ही प्रकार के आदर्श परिवार का स्वरूप विकसित होता रहा है, इसे सामान्यत: संयुक्त परिवार कहा जाता है। संयुक्त परिवार भारत में विस्तृत नातेदारी संबंधों की एक इकाई रही है।

     सामाजशास्त्रियों ने सामान्यत: भारतीय जीवन में विवाह एवं नातेदारी का अधययन हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाईयों एवं जनजातियों के संदर्भ में किया है। परन्तु विवाह एवं नातेदारी विषयक नृजातीय विविधताओं के बावजूद समाजशास्त्रियों ने पारिवारिक संगठन में भारतीय स्तर पर बहुत ज्यादा समानता पाई है।  भारत में विवाह, परिवार एवं नातेदारी के बारे में कुछ  विस्तृत चर्चा आवश्यक है।

 

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