सनातन भारतीय समाज का मूल तत्व : अग्नि और सोम
अपनी हर कमी के बावजूद भारतीय समाज और इसकी अधिकांश संस्थाएं तुलनात्मक रूप से बेहतर स्थिति में हैं। आधुनिक प्रजातांत्रिक व्यवस्था, मिश्रित अर्थव्यवस्था का नव उदारवादी स्वरूप, परिवार और नातेदारी की लचीली व्यवस्था, धार्मिक जीवन की भक्ति केन्द्रित अंतर्धारा, खेल और सिनेमा का मनोरंजक संसार, जिज्ञासा और खोज की आम आदमी में ज्ञान-पिपासा भारत को समकालीन समाज व्यवस्थाओं में विशिष्ट बनाती है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगला देश या नेपाल से भारत की तुलना करना भारतीय मेधा के साथ अन्याय है। भारत की तुलना चीन, रूस, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, यूरोपीय संघ और अमेरिका से ही हो सकती है। परन्तु भारत जैसी विविधता में एकता, निराशजनक स्थिति में भी आनंद के खोजी लोग, बदहवासी में भी जिन्दगी का उत्सवनुमा स्वरूप अपने आप में भारत को एक अद्वितीय सभ्यता बनाता है। वास्तव में भारत में जन्म लेना एक सौभाग्य की बात है। प्रकृति और नियति ने भारत को छ: ऋतुएं प्रदान की हैं। सुरम्य वादियों के साथ रेगिस्तानी इलाका भी दी है। यहां एक साथ बाढ़ और सूखा दोनों देखने को मिलता है। यह महज संयोग नहीं है कि बाढ़-प्रभावी इलाका में शिव-पूजकों की संख्या सर्वाधिक है और सूखा प्रभावित इलाके में विष्णु-पूजकों की संख्या सर्वाधिक है। देश के सबसे समृध्द इलाके वे हैं जहां शैव और वैष्णव जनसंख्या बराबर संख्या में है। दरअसल यह संसार अग्नि और सोम से बना है। सोम जल तत्व है। शिव सोमेश्वर हैं। विष्णु अग्निवाचक हैं। इस्लाम में भी सोम तत्व की ही साधना की जाती है। ईसाई लोग मूलत: अग्नि तत्व की साधना करते हैं। यहूदी लोग सोम तत्व की साधना करते हैं। जोरास्ट्रियन पारसी लोग अग्नि तत्व की साधना करते हैं। बौध्द लोग मध्यमार्गी हैं। स्थविरवादी बौध्द लोगों की साधना में अग्नि तत्व प्रमुख है तो बौध्द वज्रयानियों में सोमतत्व प्रमुख हैं। भारत में उपरोक्त सभी धर्मों के अलावे भी बहुत सारे मत-सम्प्रदाय हैं जो क्रमश: अग्नि या सोम तत्व की आराधना करते हैं। भारतीय सभ्यता को इस अर्थ में भी सनातन सभ्यता कहा जाता है क्योंकि अग्नि- सोम की साधना इस सभ्यता में सनातन काल से अनवरत चल रही है। जो भारत में है वह संसार में अन्यत्र इसी स्वरूप में कहीं नहीं है। अग्नि और सोम के बीच संतुलन बैठाने की भारतीय सभ्यता में जितना प्रयोग हुआ है उतना अन्यत्र देखने को नहीं मिलता। जब स्थविरवादी बौध्दों ने इस देश में अग्नि तत्व के प्रभाव में निवृति मार्ग को प्रमुख बना दिया तो सोम तत्व को संतुलित करने के लिए इस्लाम का प्रादुर्भाव हुआ। जब इस्लाम के प्रभाव में सोम तत्व ने प्रवृति मार्ग का प्रभुत्व बनाया तो अग्नि तत्व को संतुलित करने के लिए ईसाई लोग आए। स्वतंत्रता स्रंगाम में भी अग्नि+सोम का संतुलन साधा जाता रहा। महात्मा गांधी वैष्णव थे तो जवाहरलाल नेहरू काश्मीर शैवागम के प्रतिनिधि। गांधी जी अग्नि तत्व और निवृति मार्ग के पथिक थे तो जवाहरलाल नेहरू सोम तत्व और प्रवृति मार्ग के पथिक थे। जब तक अग्नि - सोम के बीच संतुलन सधता रहेगा एक सनातन सभ्यता के रूप में भारत का भविष्य उज्जवल बना रहेगा।
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