Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

भारतीय सभ्यता का भविष्य

भारतीय सभ्यता का भविष्य

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आधुनिक सभ्यता में स्वाइन फ्लु, बर्ड बलू, बाढ़, सूखा, सुनामी, कैटरीना - ये सभी कुपित प्रकृति के हथियार हैं जिससे जनसंख्या नियंत्रित होता है। मल्थस ने काफी पहले कहा था कि जब मनुष्य जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं करता तो प्रकृति हस्तक्षेप करती है और जनसंख्या नियंत्रित कर देती है। सबसे संतुलित खाना भारत का शाकाहारी खाना है। भारतीय सभ्यता ने प्रकृति और संस्कृति के बीच एक संतुलन बना कर रखा है जिससे प्रकृति का कोप कम सहना पड़ता है। प्रकृति के सहयोग से ही महान सभ्यतायें बनती हैं। एक हद से ज्यादा हस्तक्षेप करने की कोशिश में आधुनिक तकनीक का उपयोग प्रकृति के संयम को तोड़ देता है और कुपित प्रकृति मनुष्य को दंडित करने लगती है। जल, जमीन और जंगल प्रकृति की आत्मा के अवयव हैं और इनसे मनुष्य का आत्मिक संबंध सदियों से रहा है। हिन्द स्वराज में गांधी जी सभ्यता की परिभाषा में इसीलिए नीति एवं फर्ज की बात करते हैं। इस संसार में मनुष्य के अधिकार की एक सीमा या हद है। उसे यह अधिकार अपने कर्त्तव्य या फर्ज निभाने के लिए ही मिलता है। सनातन धर्म में इस फर्ज को ऋण कहा जाता है। ऋण चार प्रकार के होते हैं पितृऋण, ऋषिऋण, देवऋण एवं भूतऋण। इन ऋणों की पूर्ति के क्रम में प्रकृति का संतुलन कायम रहता है। संस्कृति और प्रकृति के बीच आदान - प्रदान होता है। अधिकार एवं कर्त्तव्य के बीच समन्वय होता है। ओशो का कहना सही है कि भोग और त्याग एक ही सिक्के (''संसार'') के दो पहलू हैं। इन्हे त्यागने की नहीं इनको अतिक्रमणें करने की जरूरत है। जिस देश में महान नास्तिक नहीं होते वहां महान आस्तिक होने की भी गुंजायश नहीं होती। बुध्द का मध्यमार्ग यही है। इसी समन्वयवादी दृष्टि के कारण भारतीय सभ्यता का भविष्य बहुत अच्छा है लेकिन भारत के आम आदमी का भविष्य भी अच्छा हो सके ऐसी राजनीति एवं राजनैतिक तत्रं का विकास होना अभी भी बाकी है। भारतीय शासक वर्ग में विजन या विश्वदृष्टि का अभाव है। भारतीय मध्यवर्ग पूरी तरह आत्मकेन्द्रित एवं सुविधाभोगी है। इन्हें आम आदमी के सुख - दुख से सरोकार नहीं है। भारतीय राज्य का सर्व प्रथम कर्त्तव्य पानी, सफाई, भोजन, वस्त्र, वैकल्पिक ऊर्जा, बुनियादी शिक्षा, जनसंख्या नियंत्रण तथा स्वास्थ्य की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि आम आदमी की जिन्दगी में खुशहाली आ सके। दुर्भाग्य से भारतीय राज्य 1947 से अब तक उपरोक्त बुनियादी आवश्यकताओं की पुर्ति करने का कर्त्तव्य नहीं निभा पाया है। शासक दल तथा प्रमुख राजनीतिक दलों की दिलचस्पी आम आदमी की खुशहाली में न होकर अपने लिए वेतन, भत्तो और विदेश यात्राओं में ज्यादा रहती है। भारतीय संसद का कीमती समय व्यर्थ के मुद्दों पर चर्चा करने में निकल जाता है और बुनियादी मुद्दों पर खानापूर्ती और शोशेबाजी की जाती है। इसके बावजूद आम आदमी अपने जीवन में सनातन धर्म को पूरा करने में यथा संभव लगा रहता है। भारतीय सभ्यता का इसीलिए अच्छा भविष्य है।

 

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