Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

जीवन संगीत

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जीवन संगीत

 

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तब हम अपने और ध्वनि के बीच गहरी लयबध्दता अनुभव करते हैं, तब हममें उसके लिए गहरा अनुराग पैदा होता है। ओम् ध्वनि इतनी सुंदर और संगीतमय है कि हम इसका जितना ही उच्चारण करते हैं हम उसकी सूक्ष्म मिठास से भर जाते हैं। ओम् एक मीठी ध्वनि है। यह शुध्दतम ध्वनि है। जब हम ओम् ध्वनि के साथ लयबध्द अनुभव करने लगते हैं तब हमें इसका जोर से उच्चारण करना बंद कर देना चाहिए। तब ओंठ बंद करके ओम् का भीतर ही उच्चारण करना चाहिए। तांत्रिकों के अनुसार इस प्रक्रिया से ओम् का उच्चारण करने से हम अधिक प्राणवान्, अधिक जीवंत बन जाते हैं। हममें एक नवजीवन का संचार होने लगता है। हमारा शरीर एक वाद्य यंत्र की तरह है। इसे लयबध्दता की जरूरत है, और जब लयबध्दता खंडित होती है, तो हम अड़चन में पड़ते है। यही कारण है कि संगीत सुनना हमें अच्छा लगता है। संगीत का अर्थ है लयबध्द सुर - ताल। जब हमारे भीतर और बाहर संगीत की अनुभूति होती है तो हमें सुख - चैन मिलता है। इसका यही कारण है कि हम स्वयं गहरे रूप में संगीतमय हैं। हमारा शरीर एक वाद्ययंत्र है और हमारी आत्मा सूक्ष्म रूप में नाद ब्रहम का अंश है। जब हम अपने भीतर ओम् का धीरे - धीरे गुंजार करते हैं तो हमारा पूरा शरीर इसके साथ नृत्य करने लगता है। तब हमारा पूरा शरीर इसमें नहाने लगता है। हमारे शरीर का पोर - पोर इस स्नान से शुध्द होने लगता है। यह गुंजार जितना धीमा होगा हमें उतना ही ज्यादा आनंद प्राप्त होता है। यह होमियोपैथी की खुराक जैसी है, जितनी छोटी खुराक उतनी ही गहरी उसकी पैठ होती है। गहरे जाने के लिए हमें सूक्ष्म से सूक्ष्मतर बनना पड़ता है। हृदय स्वयं इतना कोमल है कि सिर्फ बहुत धीमें लयपूर्ण और सूक्ष्म स्वर ही उसमें प्रवेश पा सकते हैं। और जब तक कोई ध्वनि हमारे हृदय में प्रवेश न करे, तब तक मंत्र पूरा नहीं होता है। कोई भी मंत्र तभी पूरा होता है जब उसकी ध्वनि हमारे हृदय में, हमारी अंतस सत्ता के गहनतम केंद्रीय मर्म जिसे हम आत्मा कहते हैं, में प्रवेश करती है। ध्वनि जितनी सूक्ष्म होती है, उतने ही ज्यादा सघन और तीक्ष्ण बोध की हमें जरूरत होती है। यदि ध्वनि संगीतपूर्ण, लयपूर्ण और सूक्ष्म होती है तो उसे अपने भीतर सुनने के लिए हमें बहुत सचेत और सजग रहना पड़ता है। वर्ना नीदं आ जाती है और तब मंत्र जाप का असली उद्देश्य ही अपूर्ण रह जाता है।

किसी मंत्र या जप के साथ, किसी बीज ध्वनि के प्रयोग के साथ यही कठिनाई है कि वह नीदं पैदा करता है। वह एक शामक है, नीदं की दवा है। अत: दो चीजें एक साथ साधनी पड़ती है - ओम् के उच्चारण को धीमा और सूक्ष्म करते जाना और उसके साथ - साथ ज्यादा सजग होते जाना। ज्यादा सजग बने रहने के लिए ओम् का उच्चारण ज्यादा सूक्ष्म करते जाना होता है। तब एक बिंदु आती है जब ध्वनि निर्ध्वनि में या पूर्ण ध्वनि में प्रवेश करती है और हम पूर्ण होश में प्रवेश कर जाते हैं। जब तक ध्वनि निर्ध्वनि या पूर्णध्वनि में पहुंचे, उस समय तक हमारे होश को चरम शिखर पर होना चाहिए। जब ध्वनि अपनी घाटी में उतर जाती है, घाटी के निम्नतम, गहनतम केंद्र में उत्तार जाती है, तब हमारा होश उच्चतम शिखर पर पहँच चुका होता है और ध्वनि निर्ध्वनि में या हम परिपूर्ण होश में विलीन हो जाते हैं। इसे सिद्धि कहते हैं। और यही ब्रहमानुभूति से ब्रहमानुभूति की साधना और सिद्धि है।

 

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