आनंद (1970) हृशिकेष मुंखर्जी की फिल्म
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आनंद फिल्म का एक प्रमुख थीम विवाह है। डा. कुलकर्णी की शादी का साल गिरह, डा. बनर्जी और रेणु का विवाह, आनंद की प्रेमिका का दूसरे व्यक्ति से विवाह और ईषाभाई सूरतवाला की विवाह की समस्या। इन विवाहों की कथा को बहुत मनोरंजक ढंग से प्रेम विवाह बनाम माता - पिता द्वारा ठीक किये गए अरेन्जड मैरिज का मनोरंजक कॉनट्रास्ट प्रस्तुत किया गया है। रेणु की मां कहती भी है कि अब माता - पिता से कौन पूछता है अब तो प्रेम विवाह का जमाना है। पूरा भारत 1970 में भले ही मूलत: पारंपरिक रहा हो, बम्बई महानगर में 1970 तक आते - आते प्रेम विवाह का चलन काफी बढ़ गया था। अत: 1960 के दशक से हिन्दी सिनेमा में टेक्नीकलर प्रेम और रोमांस की कहानियां 1950 के दशक के सामाजिक सन्दर्भों वाले कथानकों की तुलना में काफी बढ़ गए थे। 1957 में बने मुसाफिर से हृशिकेष मुखर्जी ने हल्की फुल्की मनोरंजन की भाषा में मध्यवर्गीय भारतीय समाज के सामाजिक पहलुओं को अपनी फिल्मों में जगह देना जारी रखा था। वे एक तरफ विशुद्ध कॉमेडी (चुपके - चुपके, बाबर्ची, गोलमाल बनाया) तो दूसरी तरफ अनाड़ी, सत्यकाम, आशीर्वाद, आनंद, अभिमान और बेमिशाल जैसी सोदेश्य सामाजिक फिल्में भी बनायी। आनंद उनकी फिल्मों का सरताज है जिसमें उनकी रचनात्मक ऊर्जा का विष्फोट हुआ है। लाइलाज बीमारी पर आनंद उनकी एकमात्र फिल्म नहीं है। इसी थीम पर 1975 में उन्होंने मिली नामक फिल्म बनायी थी जिसमें जया भादुड़ी और अमिताभ बच्चन की मुख्य भूमिका थी। यह फिल्म आनंद की तरह सफलता नहीं पा सकी तो उसका प्रमुख कारण यही था कि मिली की बीमारी फिल्म की केन्द्रीय वस्तु है जबकि आनंद की बीमारी उसके जीवन और संबंधों की मात्र पृष्ठभूमि है। आनंद एक बहुआयामी फिल्म है और मिली मूलत: कारूणिक फिल्म है। एक कारण और भी है आनंद राजेश खन्ना के सुपर स्टारडम के समय बनी थी जबकि मिली की नायिका जया भादुड़ी सुपर सितारा नहीं थी और न 1975 तक अमिताभ बच्चन सुपर सितारा के रूप में स्थापित हुए थे। 1973 में जंजीर आ चुकी थी। अभिमान आ चुकी थी। 1975 में मिली और दीवार आ चुकी थी। परन्तु शोले साल के अंत में आयी थी। अमिताभ बच्चन की सितारा हैसियत बनने लगी थी लेकिन 1975 के अंत तक धर्मेन्द्र, संजीव कुमार, मनोज कुमार, शशि कपूर और विनोद खन्ना उनसे उन्नीस नहीं थे। केवल राजेश खन्ना का पराभव होना शुरू हुआ था। 1973 में बॉबी के रिलीज से ऋषि कपूर का उदय हुआ था। अमिताभ सुपर सितारा 1977 में आयी मुकद्दर का सिकंदर तथा डॉन से बने। उससे पहले उनके नाम से फिल्में नहीं बिकती थी। निर्देशक, कहानी, पटकथा, गीत - संगीत की भूमिका तब तक सुपर सितारे से कम नहीं होती थी। 1969 से 1973 के बीच राजेश खन्ना अकेले सुपर सितारा थे। 1973 से 1977 तक कई सितारों के बीच प्रतिस्पर्धा थी जिसमें अमिताभ बच्चन अंतत: विजयी हुए। अमिताभ बच्चन को सुपर सितारा बनाने में जितना योगदान सलीम - जावेद द्वारा गढ़ा यंग्री यंग मैन की इमेज का है उससे कम योग दान मनमोहन देसाई और हृशिकेष मुखर्जी की फिल्मों का नहीं है। अमिताभ बच्चन यदि अंतत: अपने समकालीनों पर भारी पड़े तो उसका कारण ही यही था कि वे एक ही काल खंड में गंभीर, हंसोड और यंग्री यंग मैन तीन तरह की भूमिका एक समान दक्षता से कर सकते थे। और नि:संदेह यह कहा जा सकता है कि इस दक्षता के बीज फिल्म आनंद में नजर आये थे। इसीलिए उन्हें इस फिल्म के लिए बेस्ट सहायक अभिनेता का पुरस्कार भी मिला था। आनंद फिल्म 1970 में बनी। इसकी कहानी हृशिकेष मुखर्जी ने खुद लिखी थी। अमेरिका में 1969 में द गॉड फादर उपन्यास का प्रकाशन हुआ था इसके लेखक मारियो पूजो थे। 1969 में शक्ति सामंत ने आराधना फिल्म बनायी थी जिससे राजेश खन्ना सुपर सितारा बने। इतालवी मूल के फ्रांसिस फोर्ड कपोला ने 1972 में 'द गॉड फादर' फिल्म का पहला भाग बनाया था। 1975 में इससे प्रेरित दो फिल्में बनीं फिरोज खान की धर्मात्मा और रमेश सिप्पी की शोले। भारत में अपराध का महिमामंडन 1975 से ही हुआ। लेकिन 'द गॉड फादर' में केवल अपराध का महिमामंडन नहीं था, फ्रांसिस फोर्ड कपोला ने माफिया को अमेरिकी पूंजीवाद के रूपक में बदल दिया था। गॉडफादर में अमेरिका में रहते आए एक इतालवी माफिया परिवार के 1945 से 1955 तक के दस सालों का वृतांत उकेरा गया है। यह दरअसल द्वितीय विश्वयुध्द के बाद उभरी विश्व व्यवस्था में अमेरिकी पूंजीवाद का उत्कर्ष काल है। द गॉडफादर का नायक एक बूढ़ा डॉन विटो कॉरलेऑन है जो अमेरिकी पूंजीवाद के प्रतीक माफिया परिवार का मुखिया है। बूढ़ा होता डॉन विटो हिंसा के आदेश देता है, जो दरअसल पूंजी और ताकत को हासिल करने की युक्तियां भी हैं। लेकिन फिल्म में माफियाओं के बीच खूनी खेल ही नहीं चलता, वहां अपराध के बीच परिवारों में मानवीय संबंधों के वृतांत भी दिखते हैं। यह फिल्म अपराध करने वालों के परिवारों में फैले प्रेम संबंधों, तनावों, इर्ष्या, वात्सल्य और रहस्यों की भूल भुलैया में भी उसी खूबी के साथ जाती है, जिस तरह वह हिंसा के नरक में उतरती है। एक बड़े माफिया परिवार के शीर्ष पर बैठे डॉन विटो का अपने परिवार से गजब का जुड़ाव है। विटो का अभिनय मार्लन ब्रैंडो ने निभाया था। इसके लिए उन्हें सबसे अच्छे अभिनेता का ऑस्कर भी मिला था। आनंद और गॉडफादर की तुलना करके भारतीय और अमेरिकी संस्कृति के अंतर को समझ सकते हैं। आनंद की मृत्यु के बाद पूरी फिल्म में करूणा की लहर फैल जाती है जबकि माफिया के दो गुटों के बीच लड़ाई में जब विटो के बेटे सनी की हत्या होती है तो बेटे का शव विराग नहीं और गहरी हिंसा का उत्प्रेरक बन जाता है। यह अधिकार क्षेत्र और शक्ति बनाए रखने का दुष्चक्र और विवशता है। भारत की पहली फिल्म ' राजा हीरश्चन्द्र' थी जबकि अमेरिका की पहली फिल्म ' द ग्रेट ट्रेन रॉबरी' थी। तब से भारतीय सिनेमा और अमेरिकी सिनेमा का मूल स्वर नहीं बदला है। 1970 के दशक में आनंद और द गॉडफादर इसका उदाहरण है।
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