Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

भारतीय राजनीति का समकालीन परिदृश्य

भारतीय राजनीति का समकालीन परिदृश्य

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मंदी के शीतयुध्दों से सफलतापूर्वक लोहा ले पाने की देश के गरीब व्यक्ति की ताकत को बाजार और धर्म के नकली भगवान झूठे आश्वासनों की वियाग्रा बेचकर कमजोर कर रहे हैं और संघर्ष इस बात को लेकर चल रहा है कि विदेशी बैंको में जमा अरबों के काले धन को वापस लाने का प्रयास किए जाने चाहिए। छोटे-छोटे बचतकर्ता अपनी ईमानदारी की कमाई को जिन सहकारी बैंको में जमा करते हैं ,वे उनके साथ धोखा धड़ी करने में क्यों कामयाब हो जाती हैं? व्यवस्था में राजनीतिक संरक्षण के थेगलें लगे हैं जो आर्थिक अपराधियों को बचाते रहते हैं। परंतु इस देश के फटे से फटेहाल आदमी के पास भी घोर से घोर मुसीबत के बीच अपने आप को जिंदा रख पाने की ताकत मौजूद है। अगर ऐसा नहीं होता तो पिछले साठ वर्षों के दौरान भारत अब तक साठ बार आर्थिक रूप से तबाह हो चुका होता। विनाश की प्रत्येक भविष्यवाणी और आंशका के बाद भी हर बार भारत पहले के मुकाबले ज्यादा मजबूत होकर प्रकट हुआ।
इसका यह मतलब नहीं है कि किसान आत्महत्या नहीं कर रहे हैं। भ्रूण हत्यायें नहीं हो रही हैं। महिलाओं पर अत्याचार नहीं हो रहा है। भ्रष्टाचार नहीं बढ़ रहा है। पुरानी नैतिकता नहीं टूट रही है। इसका केवल इतना ही मतलब है कि भारत का आम आदमी लचीला है। वह जल्दी हिम्मत नहीं हारता। वह तुलनात्मक रूप से जुझारू और आशावादी है।
शिर्डी के साईं बाबा के मंदिरों से प्रभावित होकर कई आधुनिक बाबाओं के मन में अपने मंदिर एवं आश्रम या पीठ बनवाने की आकांक्षा जगी है। श्री श्री रविशंकर और स्वामी रामदेव इनमें प्रमुख हैं। ये लोग अपने समर्थकों के बीच इस तरह की प्रवचन करते हैं ताकि इनके समर्थक इनके भक्त हो जाएं और इनको साईं बाबा के तरह अवतार या ईश्वर का प्रतिनिधि मान लिया जाए। परंतु नई पीढ़ी की मानसिकता भक्त की नहीं बल्कि प्रशंसक की है। वह इन बाबाओं को महेन्द्र सिंह धोनी, शाहरूख खान या राखी सावंत की तरह आइकॉन या मशहूर व्यक्ति मानती है।  जो विश्व हिन्दू परिषद या आर्यसमाज या गायत्री परिवार का समर्थक है वही आस्था या संस्कार चैनल का भी समर्थक है। भारत के 33 करोड़ देवताओं को पूजने वाला 18-20 प्रतिशत हिन्दू इन बाबाओं का समर्थक एवं भाजपा का वोटर है। इन वोटरों के कई आईकॉनस् में से रामदेव भी एक आईकॉन है। योग शिक्षक या प्रचारक वोट ट्रांसफर नहीं करा सकते। जिस तरह शाहरूख खान के विज्ञापन से कोक या पेप्सी बिक्रेता को शुरूआती पहचान का मनोवैज्ञानिक वरियता मिलता है उसी तरह रामदेव महाराज भी भाजपा टाइप पुरातनपंथी पार्टी के ब्रांड एम्बेसडर बन सकते हैं या एक एम.पी. बन सकते हैं। उत्तर भारत की राजनीति में न कर्नाटक के सम्प्रदायिक आचार्यों का महत्व है और न तमिलनाडु और आंध्र के अभिनेताओं का, उत्तर भारत में राजनीति अब एक गंभीर फेज में आ चुकी है। अब नारे और विज्ञापन खराब माल को नहीं बेच सकते। राजनीति का चुनावी उत्पाद  अलग कारखाने में बनता है एवं संस्कारित होता है।विश्वविद्यालय उसी के कारखाने हैं।थिंक टैंक एवं राजनीतिक प्रशिक्षण केन्द्र उसी के टकसाल हैं। 
वाममोर्चा के काडर चक्रव्यूह को भेदते हुए माओवादी लालगढ़ से कोलकाता तक अब नक्सलबाड़ी की तर्ज पर राजनीति को हवा देने में लग गए हैं। सत्ताधारी माकपा काडरों के पास सबसे ज्यादा हथियार हैं, इसी आधार पर माओवादियों ने अपनी रणनीति के तहत माकपा के दफ्तरों और नेताओं के घरों में आग लगाकर हथियार समेट रहे हैं।
वाममोर्चा द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिए बड़े कारपोरेट घरानों को लाइसेंस दी जा रही है और बहु फसली खेती योग्य जमीन पर उद्योग लगाकर रोजगार पैदा करने का स्वांग रचा जा रहा है। बंगाल का सच यह है कि वहां वह नरेगा भी दम तोड़ चुका है, जिसके भरोसे कांग्रेस रोजगार क्रांति का सपना संजोए है। प्रतिक्रियावादी ममता बनर्जी की सलाहकार नक्सलियों के प्रति हमदर्दी रखने वाली लेखिका महाश्वेता देवी हैं।
लेकिन अंत में भारत-अमेरिका-चीन-रूस मिलकर माओवादियों को कुचल देंगे। पूंजीवाद के खिलाफ जीत आसान नहीं है। परन्तु पूंजीवाद को सर्वसमावेशी होना होगा। इसके लिए एक नई पार्टी एवं दूर दृष्टि वाले नेतृत्व की भारत में जरूरत महसूस की जा रही है। 

 

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