Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

भारतीय सभ्यता का भविष्य

भारतीय सभ्यता का भविष्य

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 भारतीय समाज में उपरोक्त सृजनात्मक अक्षमता हमारे शक्तिशाली वर्ग या अभिजात वर्ग में ब्रिटिश काल में ही आई दिखती हो, ऐसा नहीं है। सुप्रसिध्द आचार्य विद्यारण्य से प्रेरणा पा रहे विजय नगर राज्य में भी और स्वदेशी राज्य हेतु प्रेरणा देने वाले समर्थ गुरू रामदास से प्रेरित मराठों द्वारा 17 वी शती ईस्वी के हिन्दवी स्वराज की स्थापना के प्रयास में भी राज्य कर्त्ता वर्ग ने बहुत सृजनात्मक सामर्थ्य नहीं दिखाया। आचार्य विद्यारण्य की कृति पंचदशी और समर्थ रामदास की कृति दासबोध इसका उदाहरण है। अपने समाज और राजनीति तंत्र (पॉलिटी) को ऐक्यबध्द करने साथ - साथ चलने, संवाद और विमर्श करने तथा कार्य करने की एकता उत्पन्न करने में ये दोनों ही राज्य कुछ अधिक सफल नहीं रहे।
परन्तु 1991 से विश्व में भारत की स्थिति बदल रही है। शीघ्र ही वह समय आने वाला है जब भारत का राज्यतंत्र और राजनीति तंत्र हमारे समाज की आकांक्षाओं एवं आवश्यकताओं को प्रतिबिम्बित करने लगेगा और समाज के अपने व्यवहारपथों, व्यवहार - विधियों एवं अभिव्यक्ति - विधियों को भी प्रतिबिम्बित करने लगेगा तथा उन्हें सम्यक् प्रतिष्ठा देगा।   ऐसा गांधी जी के रास्ते पर चलने से होगा। गांधी जी ने भारतीय परम्परा की पुनर्प्रतिष्ठा की। परम्परा को नयी अभिव्यक्ति दिया। भारतीय समाज के विश्वास को फिर से प्रतिष्ठा दी, शक्ति दी, प्रत्यावर्तन किया। परम्परागत मॉडल की पुनर्रचना की। लेकिन इस मॉडल के तहत नये प्रयोगों की भरपूर गुंजाइश है।
महात्मा गांधी का मॉडल मूलत: उनकी 1909 में प्रकाशित पुस्तक हिन्द स्वराज में वर्णित है। हिन्द स्वराज, पंचदशी (आचार्य विद्यारण्य) और दासबोध (समर्थ रामदास) का तुलनात्मक अध्ययन करने से इतना स्पष्ट है कि महात्मा गांधी की चिन्ता स्व - धर्म और पर - धर्म का तुलनात्मक विवेचना करके बदली हुई परिस्थिति में आम भारतीयों के बीच संकल्प शक्ति और इच्छा शक्ति के साथ नैतिक बल बढ़ाना था। वे गुलामी की परम्परा का अति क्रमण करके स्वायत्ता एवं स्बावलंबी भारत में भारतीय लोग  अपने स्वधर्म का पालन करते हुए आत्म - साक्षात्कार और ब्रहम - साक्षात्कार कर सकते हैं। महात्मा गांधी की दृष्टि में सभ्यता वह आचरण है जिससे आदमी अपना फर्ज अदा करता है। फर्ज अदा करने का अर्थ है नीति का पालन करना। ऐसा करते हुए हम अपने को पहचानते हैं (आत्म - साक्षात्कार)। यही सभ्यता है। इससे जो उलटा है, वह बिगाड़ अथवा अनर्थ करने वाला है। किसी भी देश में किसी भी सभ्यता के मातहत सभी लोग सम्पूर्णता (ब्रहम - साक्षात्कार) तक नहीं पहुंच पाते। हिन्दुस्तान की सभ्यता का झुकाव नीति को मजबूत करने की ओर है, पश्चिम की सभ्यता का झुकाव अनीति को मजबूत करने की ओर है। जहां तक चाण्डाल सभ्यता नहीं पहुंची है, वहां हिन्दुस्तान आज भी वैसा ही है।

गांधी जी पश्चिम की आधुनिक सभ्यता को चाण्डाल और शैतानी सभ्यता मानते थे। महात्मा गांधी के विरोध हिन्दस्वराज को समकालीन समय के लिए अनुपयोगी सिध्द करने के लिए इसे तकनीक विरोधी या नगर विरोधी साबित करते हैं। जबकि महात्मा गांधी ने मात्र आधुनिक तकनीक एवं आधुनिक नगरों के नीति विरोधी चाण्डाल प्रवृत्ति का लक्ष्य असभ्यता है। इस असभ्यता में मनुष्य के जीवन एवं कार्यों का कोई उदात्त लक्ष्य नहीं है। वह हर तकनीक एवं वह हर व्यवस्था जिसमें आत्म - साक्षात्कार एवं ब्रहम - साक्षात्कार के लिए अनुकूल अवसर हो, महात्मा गांधी के स्वराजी मॉडल में मान्य है। वे एक सनातनी वैष्णव थे। आचार्य रामानुज के वैष्णव विशिष्टाद्वैत में उनका विश्वास था। विशिष्टाद्वैत संसार को भगवान विष्णु का शरीर अथवा उनके शरीर का विस्तार मानता है। फलस्वरूप प्रकृति को निर्जीव नहीं माना जा सकता। यही कारण है कि वे ऐसे तकनीकों का विरोध करते हैं जो सत्य एवं अहिंसा पर आधारित नहीं हैं। आधुनीक विज्ञान एवं तकनीक एक प्रकार के झूठ को बढ़ावा देता है। कि प्रकृति निर्जीव है तथा मनुष्यों के हित में इसका शोषण किया जा सकता है। मनुष्य को संसार एवं सृष्टि का केन्द्र मानने वाली आधुनिक मानववाद का भी गांधी जी इसी कारण विरोध करते हैं। उनकी विश्वदृष्टि के केन्द्र में मनुष्य, प्रकृति, मनुष्योतर जीव एवं ईश्वर सभी आते हैं। सभी सत्य के ही रूप हैं। अत: वे अहिंसक तकनीक के हिमायती हैं। वे शक्तिशाली लोगों के द्वारा शक्तिहीन मनुष्य, जीव या प्रकृति के शोषण के खिलाफ हैं। वे सर्वोदय के समर्थक हैं। आज के विश्वग्राम में बहुसांस्कृतिकता की बात की जाने लगी है, पर्यावरण असंतुलन की बात समझी जाने लगी है, आतंकवादी हिंसा के खिलाफ माहौल बनने लगा है। नीति और न्याय की बातें की जाने लगी हैं। भूखमरी और कुपोषण घटनाओं पर चिन्ता बढ़ रही है। ऐसे माहौल में महात्मा गांधी की दृष्टि पर आधारित भारतीय सभ्यता का उज्जवल भविष्य है, परंतु भारतीय राजनीति एवं नेहरूवादी कांग्रेसी संस्कृति में पश्चिम की आधुनिकता का सर्वोपरि स्थान है। यह कांग्रेसी संस्कृति अंग्रेजों के खिलाफ लेकिन अंग्रेजियत के पक्ष में रही है। इस अंग्रेजी आधुनिकता का मूल वाक्य वीर भोग्या वसुन्धरा या सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट है। फलस्वरूप कांग्रेसी शासन में 1947 से ही आम आदमी की आर्थिक एवं सामाजिक हालत लगातार बद से बदतर होती रही है जबकि धनी एवं अभिजात वर्ग लगातार समृध्द से समृध्दतम होता रहा है। कांग्रेसी शासन में महंगाई, कालाबाजारी एवं भ्रष्टाचार खूब फलता - फूलता रहा है। फलस्वरूप नगरीय जीवन एवं मध्यवर्ग का लगातार विस्तार होता रहा है। गांवों की हालत बद से बदतर होते जा रही है। 2006 के नेशनल सैम्पुल सर्वे और्गनाइजेशन के अनुसार भारत के 40 प्रतिशत किसान खेती नहीं करके दूसरे व्यवसाय करना चाहते हैं। करीब 80 हजार ग्रामीण किसान एवं मजदूर प्रतिवर्ष शहरों में बसने के लिए गांव छोड़ रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार 2020 ईस्वी तक तमिलनाडु के 70 प्रतिशत, पंजाब के 65 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश के 55 प्रतिशत किसान शहरों में रहने लगेंगे। 1960 में भारत के सकल घरेलु उत्पाद में कृषि का शेयर यानि हिस्सा 46 प्रतिशत था, जबकि 2008 -09 में यह मात्र 20 प्रतिशत रह गया है। अभी भी भारतीय जनसंख्या के कीरब 70 प्रतिशत लोग खेती के काम में लगे हुए हैं। इन 70 प्रतिशत लोगों की हालत महात्मा गांधी के बताए रास्ते से ही सुधारी जा सकती है जवाहरलाल नेहरू और मनमोहन सिंह के रास्ते नहीं सुधारी जा सकती।

 

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