पाठशाला (2010) - मिलिन्द उके
पेज 1 पाठशाला की कहानी एवं पटकथा एक मुसलमान ने लिखी है। एक दूसरे मुसलमान ने इसका संवाद, गीत और संगीत दिया है। इसकी निर्माता एक मुस्लिम महिला है। मिलिन्द उके मात्र इसके निर्देशक हैं। यह शिक्षा जगत के बाजारीकरण पर एक व्यंगात्मक फिल्म है। कलात्मकता की दृष्टि से यह एक औसत फिल्म है लेकिन स्कूल शिक्षा के व्यावसायिकरण से जुडे मुद्दों को उठाने का इसमें प्रयास किया गया है। खासकर हिन्दू व्यावसायियों द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों पर मुस्लिम दृष्टि से यह अच्छा व्यंग है। पठकथा और निर्देशकीय कौशल की इसमें स्पष्ट सीमाएं हैं। इसके बावजूद इसको एक बार देखा जाना चाहिए। नाना पाटेकर ने अच्छा अभिनय किया है। अतिनाटकीयता से वे बचे हैं। 1990 के दशक में नाना पाटेकर ने कई फिल्मों में काफी उबाऊ नाटकीयता दिखलायी थी। शाहिद कपूर ने भी अच्छा अभिनय किया है। आयेशा टकिया की इसमें काफी छोटी भूमिका है। सुशांत सिंह, सौरभ शुक्ला, सुश्मिता मुखर्जी ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। अंजन श्रीवास्तव ने बाघमारे की भूमिका में छाप छोड़ा है। बहरहाल, फिल्म पाठशाला की कहानी सरस्वती विद्या मंदिर के 35 वर्षों की कहानी है। इसके प्रिंसिपल नाना पाटेकर में शिक्षा देने का पैशन (जुनून) है। कहीं ध्यान बंट न जाये इस लिए वह विवाह नहीं करता है। बच्चों से उसे बहुत लगाव है। 35 वर्षों की अथक मेहनत से वह स्कूल का गुडविल स्थापित करता है। स्कूल का चपरासी अंजन श्रीवास्तव भी 35 वर्षों से इस स्कूल और नाना पाटेकर की निष्ठा और लगन का गवाह है। उसे भी स्कूल और बच्चों से बहुत प्यार है। लेकिन इसी बीच मैनेजमेंट बदल जाता है। एक योजना यह है कि अड़ियल प्रिंसिपल को हटाकर स्कूल की जगह मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बना दी जाये। अत: बात-बात पर प्रिंसिपल को लांक्षित किया जाता है। उसे पास-पड़ोस के नये स्कूलों की तरह फीस बढ़ाने, सुविधा बढ़ाने और स्कूल का विज्ञापन करने के लिए मजबूर किया जाता है। मैनेजमेंट को हर कीमत पर बढ़ा हुआ मुनाफा चाहिए। सुविधा बढ़ाने के लिए मैनेजमेंट अतिरिक्त पैसा खर्च करने के लिए भी तैयार नहीं है। प्रिंसिपल फीस बढ़ाने के लिए तैयार नहीं है। वह वैकल्पिक साधनों की व्यवस्था करने की पूरी कोशिश करता है लेकिन अंतत: हार जाता है। वह मैनेजमेंट के एजेन्ट सौरभ शुक्ला को फीस बढ़ाने और व्यवसायिकरण करने की इजाजत दे देता है। इससे कुछ पहले शाहिद कपूर एक नया शिक्षक बनकर आता है। उसकी नियुक्ति तो अन्य विषय पढ़ाने के लिए हुई थी लेकिन साथ में वह म्युजिक टीचर का काम भी करने को राजी हो जाता है। पाठशाला में म्युजिक टीचर की जगह खाली थी। शाहिद कपूर की हम उम्र आयेशा टकिया पहले से उस स्कूल में है। वह एक साथ कई काम करती है। उसकी नियुक्ति न्यूट्रिशियनिस्ट के रूप् में हुई थी। सुशांत सिंह स्पोर्ट्स टीचर है। काफी मेहनत से बच्चों को खेल सिखलाता है। जब सौरभ शुक्ला मैनेजमेंट की नीतियों को लागू करने लगता है तो प्रिंसिपल चार दिनों के लिए बाहर गया हुआ है। प्रिंसिपल जब वापिस आता है तो सारे शिक्षक उससे बात करते हैं। प्रिंसिपल कहता है कि जो भी हो रहा है वह उसकी सहमती से हो रहा है। शिक्षक निराश होकर सौरभ शुक्ला की तानाशाही बर्दास्त करते हैं। जब पानी सिर के उपर से बहने लगता है तो शिक्षक और विद्यार्थी मिल कर हड़ताल कर देते हैं। बात मीडिया में आ जाती है। मंत्री मैनेजमेंट को धमकाता है। मैनेजमेंट प्रिंसिपल को हड़काना चाहता है। लेकिन नाना पाटेकर 'शट अप' कह कर ट्रष्टी को चुप करा देता है। वह इस्तीफा देने का मन बना चुका है। इसी बीच अंजन श्रीवास्तव शाहिद कपूर को एक गुप्त फाइल दिखलाता है जिसमें मैनेजमेंट की योजनायें हैं। उसे देखकर शाहिद कपूर को पूरी बात समझ में आती है। वह सभी शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को संगठित करके नाना पाटेकर को इस्तीफा वापिस लेने के लिए मनाता है।
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