पाठशाला (2010) - मिलिन्द उके
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प्रिंसिपल एक अंतमुर्खी एवं अनुशासन प्रिय व्यक्ति है। लोगों का प्यार और इज्जत देखकर वह हंस पड़ता है और स्कूल में रहने के लिए तैयार हो जाता है। इस फिल्म का संदेश यह है कि पाठशाला पैसन एवं मिशन की जगह है। मिलजुल कर इसे व्यवसायिकरण से अब भी बचाया जा सकता है। भारत में ऐसी पाठशालाओं का अस्तित्व आज भी है। हिन्दुओं में अवश्य ऐसी पाठशालायें बहुत कम हैं। हिन्दी सिनेमा में कहानी, पटकथा, संवाद, गीत लिखने में आज भी हिन्दुओं की तुलना में मुसलमानों की संख्या बहुत ज्यादा है। यह महज संयोग नहीं है। यह उनकी तैयारी का फल है। हॉलीवुड में यहुदि एवं नव - पैगन रचनाकारों की संख्या एवं तैयारी सबसे ज्यादा है। अमेरिका को कुछ लोग कंजरवेटिव ईसाई देश मानते हैं लेकिन यदि ऐसा सचमुच होता तो बराक हुसैन ओबामा वहां के राष्ट्रपति नहीं बन पाते। हैरी पौटर सीरिज इतना लोकप्रिय नहीं होता। साइन्स फिक्शन के प्रति इतना क्रेज नहीं होता। उपभोक्तावाद इतनी लोकप्रिय विचारधारा नहीं होती। इवानजेलिस्ट एवं बैपटिस्ट हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं। उनके पास कहने के लिए कोई ठोस थियोलॉजिकल तर्क नहीं है। आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक ने ईसाई मिशनरीज की विश्वदृष्टि को अविश्वसनीय बना दिया है। अत: अधिकांश लोगों ने चर्च जाना छोड़ दिया है। अमेरिका और यूरोप में ईसाईयत अब सांस्कृतिक पहचान का मामला अधिक है और धार्मिक आस्था का मामला कम है। आधुनिकता रूपी राक्षसी संस्कृति पश्चिमी ईसाईयत के विरोध में पश्चिमी पैगन संस्कृति के भग्नावशेष से ही निकली है। जर्मनी, ईंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका इसके तीन प्रमुख केन्द्र रहे हैं। जर्मनी में धर्मसुधार आंदोलन हुआ। ईंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति हुई। अमेरिका में राजनीतिक क्रांति हुई। आजकल संयुक्त राज्य अमेरिका पश्चिमी आधुनिकता और पश्चिमी ईसाईयत का संयुक्त केन्द्र है। अमेरिकी आधुनिकता की आत्मा पैसा, सैनिक प्रतिष्ठान एवं हॉलीवुड की फिल्मों में कैद है। इसका मस्तिष्क वहां के बड़े फाउन्डेसंस में वास करती है। जहां असली ज्ञान प्रकाशित नहीं किया जाता वल्कि रणनीतिक उपयोग में लाया जाता है। इसकी असली शक्ति वहां की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास है। वहां की संस्कृति का व्याकरण हॉलीवुड की फिल्में रचती हैं। वहां के पिछडे इलाकों में प्रोटेस्टैंट ईसाईयत का अफीम इवानजेलिक मिशन के लोग परोसते हैं। इनके दान से गरीब मुल्कों में धर्मान्तरण किया जाता है। अमेरिका का असली देवता पैसा है। ये लोग पैसा के लिए कुछ भी कर सकते हैं। परन्तु धर्म के नाम पर स्वेच्छा से जान नहीं दे सकते। हां, धर्म के नाम पर मौका मिलने पर जान जरूर ले सकते हैं। इन लोगों ने मार्क्सवादियों को अवश्य हरा दिया। 1917 से 1991 तक सोवियत संघ ने आधुनिकता का एक वैकल्पिक मॉडेल खड़ा करना चाहा। लेकिन वह अपने ही अंतर्विरोधों के कारण जर्जर हो चुका था। अमेरिका और पोप जॉन पॉल ने मिलकर पूर्वी यूरोप में सोवियत साम्यवाद को दफना दिया। पोप ने सोचा होगा कि इससे ईसाईयत फैलेगी, लेकिन फैला अमेरिकी उपभोक्तावाद। चीन में माओ और क्युबा में फिदेल कास्त्रो की तानाशाही का स्वाभाविक अंत हुआ। देंग शियाओ पिंग के नेतृत्व में 1979 से चीन ने समाजवादी बाजारवाद खुद ही अपना लिया। अमेरिका और चीन एक - दूसरे के व्यावसायिक मित्र हो गए। 1991 से भारत खुद अमेरिकी नीतियों पर चलने लगा।
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