Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

श्री शिव तत्व

श्री शिव तत्व

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शिवलिगों पासना का रहस्य

सत्ता के बिना आनंद नहीं और आनंद के बिना सत्ता नहीं। मूल प्रकृति (योनि) और परमात्मा (लिंग) ही संसार और जगत की उत्पत्ति के कारण हैं।
समष्टि ब्रहम का प्रकृति की ओर झुकाव अधिदैविक काम है।
राधाकृष्ण, गौरीशंकर , अर्धनारीश्वर का परस्पर प्रेम ,परस्पर आकर्षण है और यह शुध्द प्रेम ही शुध्द काम है। यह कामेश्वर या कृष्ण का स्वरूप ही है। सत रूप गौरी एवं चितरूप शिव दोनों ही जब अर्ध्दनारीश्वर के रूप में मिथुनीभूत होते हैं, तभी पूर्ण सच्चिदानंद का भाव व्यक्त होता है, परन्तु यह भेद केवल औपचारिक ही है, वास्तव में तो वे दोनों एक ही हैं। भगवान अपने स्वरूप को देखकर स्वयं विस्मित हो जाते हैं। बस इसी से प्रेम या काम प्रकट होता है।इसी से शिव शक्ति का संमिलन होता है। यही श्रृंगाररस है। पूर्ण सौन्दर्य अनन्त है। उसी सौन्दर्य के कणमात्र से विष्णु ने मोहिनी रूप से शिव को मोह लिया। वही सगुण रूप में ललिता, कहीं कृष्ण रूप में प्रकट होता है।

निराकर, निर्विकार, व्यापक दृक् या पुरूषतत्व का प्रतीक ही लिङग है और अनन्त ब्रहमाण्डोत्पादिनी महाशक्ति प्रकृति ही योनी, अर्घा या जलहरी है। न केवल पुरूष से सृष्टि हो सकती है , न केवल प्रकृति से। पुरूष निर्विकार, कूटस्थ है, प्रकृति ज्ञानविहीन, जड़ है।

भगवान् कहते हैं- महद्ब्रहम- प्रकृति- मेरी योनि है, उसी में मैं गर्भाधान करता हूँ, उससे महदादिक्रमण समस्त प्रजा उत्पन्न होती हैं। लिड़ग् और योनि व्यापक शब्द हैं। गेहूँ, यव आदि में भी जिस भाग में अंकुर निकलता है उसे योनि माना जाता है, दाने निकलने से पहले जो छत्र होता है वह लिड़ग् है।

उत्पत्ति का आधारक्षेत्र भग है, बीज लिड़ग् है। शिव सूक्ष्म अतीन्द्रिय लिड़ग् है। शक्ति सूक्ष्म अतीन्द्रिय योनि है। स्थूल लिड़ग् और योनि तो सूक्ष्म लिड़ग् एवं योनि की अभिव्यक्ति के संभावित रूपों में से एक रूप है। प्रतिबिम्ब मात्र है।

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