अमेरिका नियंत्रित विश्व ग्राम का भविष्य
पेज 3 7. भारत में जाति व्यवस्था का आधार ही विविधता में एकता (unity in diversity) रहा है। जाति वर्ण के टूटे रूप हैं। पूरे भारत में एक विचारधारा, एक जीवन-दर्शन, एक सम्प्रदाय नहीं चल सकता। कभी नहीं चला। वैदिक और तांत्रिक, वैष्णव और स्मार्त, वैदिक और श्रमण जैसी अनेकों धाराओं का इस देश में हमेशा सह-अस्तिव रहा है। गांधी स्वतंत्रता संगाम के केवल नायक भर नहीं थे। गांधी इस देश के लोगों को कुछ नया करनेके लिए नहीं कह रहे थे, देश के भीतर की एक जीवंत व्यवस्था को ही सभ्सतामूलक विमर्श के रूप में प्रस्तुत कर रहे थे। इस देश के पढ़े- लिखे दिग्भ्रमित लोगों को ही इस देश की सांस्कृतिक विरासत के बारे में बतला रहे थे। बिल गेट्स ने धार्मिक दान (फिलैनथ्रोपी) का जो मानक स्थापित किया है वह गांधी के ट्रस्टीशिप से मिलता-जुलता है। वैष्णवों और ईसाईयों में कई समानता रही है। शैवों, शाक्तों, तांत्रिकों और मुसलमानों में भी काफी कुछ समान रहा है। कुछ लोग भारत के प्रजापात्य (विवाह) धर्म का ही बिगड़ा/ रूपांतरित रूप इस्लाम धर्म में देखते हैं। वैदिक धर्म निगमन तर्कशास्त्र पर आधारित है। तंत्र आगमन तर्कशास्त्र पर आधारित है। तंत्र में साधना आवश्यक है। वैदिक धर्म में जानना और मानना पर्याप्त है। आधुनिक संस्कृति वणिक धर्म या वैश्य संस्कृति का सार्वभौमीकरण है। आधुनिक संस्कृति से पहले वैश्यों को संप्रभुता प्राप्त नहीं थी। धर्म और राज्य के दायरे में उनको कार्य करना पड़ता था। आजकल वैश्य बनने के लिए होड़ मची हुई है। वैश्य धर्म अब बाजारवाद के रूप में सम्प्रदायनिरपेक्ष secular) हो गया है। सम्प्रदायनिरपेक्ष एवं सम्प्रभु (Secular and sovereign) वैश्य रतन टाटा की तरह योगी और अनिल अंबानी, सुब्रत राय सहारा की तरह सर्व भोगी दोनों हो सकता है। वह नारायणमूर्ति भी हो सकता है और विजय मल्लया भी। वह मनमोहन सिंह भी हो सकता है और चिदंबरम/ यशवंत सिन्हा भी। तकनीक की तरह बाजार का भी शैतानी खेल चल रहा है। 8. एक सूचना है कि पश्चिमी यूरोप और अमेरिका में 200% की दर से इस्लाम धर्मावलंबियों में वृध्दि हो रहा है। इन्टरनेट एवं वेबसाइट का इस्तेमाल मुसलमान बहुत ज्यादा कर रहे हैं। धर्मनिरपेक्षता एवं नास्तिकता से उकताये पश्चिमी लोगों को धार्मिक विकल्प महसूस होता है। खासकर २0 वर्ष के आसपास के युवाओं में इस्लाम के प्रति तीव्र आकर्षण है। जो पश्चिमी लोग भारतीयमूल के धार्मिक सम्प्रदायों में शामिल हो रहे हैं उनको हिप्पी कहा जाता है। 40 वर्ष के अमेरिकी बुश के समर्थक थे। 20 वर्ष के अमेरिकी इस्लाम को कमजोर (अंडर डॉग) मानकर इसके प्रति आकर्षित हैं। कुछ लोगों का कहना है कि शुरू में ये अनुभवकी विविधता के लिए अपनाते हैं। लेकिन इस्लाम में आना आसान है, निकलना बड़ा मुश्किल है। आप खुद तो अपने जीवन में निकल भी सकते हैं लेकिन आपकी संतति के लिए तो निकलना बड़ा मुश्किल है। आधुनिक मुसलमान तो और भी ज्यादा कट्टर होते हैं। खासकर आधुनिक पश्चिमी मुसलमानों के बीच और वहाबी मुसलमानों के बीच आजकल नवजागरण बहुत ज्यादा है। ऐसा लगता है कि 30 वर्षों के भीतर पश्चिमी यूरोप और अमेरिका में मुसलमान का वर्चस्व कायम हो जाएगा। आधुनिक पूंजीवाद ने कैथोलिक ईसाइयत को तो पराजित कर दिया लेकिन वह जेहादी इस्लाम के दो तरफा (Bad Taliban and Wahabi Islam ) हमले को झेल नहीं पाएगा। प्रकृति और नियति का खेल निराला है । विवेकानंद, दयानंद और मालवीय का प्रोजेक्ट तो आंशिक रूप से ही सफल हुआ- आत्मविश्वास से भरे मध्यवर्ग का जन्म हुआ लेकिन यह आधुनिकता के दबाव से संम्पूर्ण रूप से हिन्दू नहीं रह पाया। दूसरी ओर वहाबियों ने इस्लामिक विश्वास एवं मूल्यों के साथ आधुनिक तकनीक का सफल मिश्रण तैयार कर लिया है। इससे लड़ना अमेरिका के लिए आसान नहीं होने वाला है। दूसरी ओर उसकी अर्थ व्यवस्था का भी हाल बेहाल है। ऐसे में अमेरिका नियंत्रित विश्व ग्राम का भविष्य अनिश्चित है । इसी अनिश्चितता में से भारतीय एवं चीनी समाज के लोग एक नया विश्व ग्राम बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें अंतिम सफलता भारत को मिल सकती है अगर यहां एक नया सांस्कृतिक नवजागरण शुरू करने में समय बध्द सफलता मिल सके । इसके लिए अनुभवी नेतृत्व चाहिए जो नई पीढ़ी में अंगड़ाई ले रहा है। 9. इन्टरनेशनल मोनेटरी फंड (IMF) ने एक रिपोर्ट जारी किया है जिसके अनुसार विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर 2011 से पहले समाप्त नहीं होने वाला है। अभी विश्व अर्थ व्यवसथा की विकास की दर 1.3 प्रतिशत है और 2010 में यह दर 1.9 प्रतिशत तक हो सकती है। 2 प्रतिशत से कम विकास दर मंदी का संकेत है। जबकि भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास दर 6.5 % है। विश्व के अन्य देशों की तुलना में हमारी अर्थव्यवस्था में कोई वित्तीय संकर भी नहीं है जबकि पश्चिम के विकसित देशों में मंदी के साथ-साथ घोर वित्तीय संकर भी है। इसे अंग्रेजी में स्टैगफ्लेशन कहते हैं। आर्थिक इतिहास में ऐसी स्थिति से उबरने में लंबा समय लगता है। एक गतिशील जीवंत राष्ट्र के पास एक विश्व दृष्टि एवं वैश्विक नीति होनी चाहिए। एक वैश्विक एजेंडा होना चाहिए लेकिन उसे अपने देश की संस्कृति, संस्कार एवं समाजिक परिवेश से जुड़ा भी होना चाहिए। इस दृष्टि से अमेरिका, रूस, चीन एवं अन्य विकसित देशों को गतिशील जीवंत राष्ट्र नहीं कहा जा सकता ।
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