अमेरिका नियंत्रित विश्व ग्राम का भविष्य
पेज 4 10. चीन की हालत बहुत खराब हो गई है। 10 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए हैं। चीनी सामान यूरोप-अमेरिका की मंदी के कारण बिक नहीं रहा हैं। वहां बड़ी मात्रा में सामानों का उत्पादन होने लगा था ताकि इकोनॉमी ऑफ स्केल के कारण बहुत सस्ता में सामान बिकता था। संभवत: सरकार भी सब्सिडी देती थी। रणनीति मार्केट पर कब्जा करने का था। उपभोक्ता बाजार में चीनी सामान पिछले 10 वर्षों में खूब बिका । अब चीनी अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में है। रूस की अर्थव्यवस्था पुतिन ने ठीक कीया था। परन्तु इसमें असली कारण तेल भंडार का पता लगना था। 2001 से रूस ने खूब तेल बेचकर डॉलर जमा किया था। अपार डॉलर रिजर्व के कारण रूसी अर्थव्यवस्था और पुतिन अजेय लग रहे थे। अति आत्मविश्वास में रूस ने तेल के क्षेत्र से विदेशी कंपनियों को अपने देश से निकाल दिया। उस वक्त तेल की कीमत 147 डॉलर प्रति बैरल था। रूस ने सोचा कि विदेशी कंपनियों को क्यों मुनाफा कमाने दिया जाए। परन्तु रूस और पुतिन का दुर्भाग्य तेल की कीमत 147 डालॅर से 40 डालॅर हो गई। अब रूसी अर्थव्यवस्था अपने डालॅर रिर्जव पर चल रही है। दिसंबर तक अगर यही हाल रहा तो रूसी अर्थव्यवस्था एक बार फिर 2001 से पहले की तरह खराब हो जाएगी। इसकी तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत काफी ठीक है। पब्लिक सेक्टर युनिट एवं बैंको की हालत काफी अच्छी है। चिदंबरम के कहने के बावजूद रिजर्व बैंक के भूतपूर्व गर्वनर जेनरल रेड्डी ने भारतीय बैंकों को अमेरिकी प्रभाव में नहीं आने दिया। नकेल कसे रखा। फलत: हमारे बैंक और हमारी अर्थव्यवस्था पर मंदी का तुलनात्मक रूप से बहुत कम असर हुआ है। NDA की सरकार होती और उसी तरह डिसइनवेस्टमेंट चलते रहता तो हम भी बर्बाद हो जाते। इसमें लेफ्ट फ्रंट की भी जाने-अनजाने बड़ी सकारात्मक भूमिका रही। इन लोगों ने UPA सरकार की नकेल कसे रखा। तीसरा कारण हमारी अर्थव्यवस्था का स्वरूप है। हम लोग छोटे स्केल पर चीजों का उत्पादन करते हैं। हमारी अर्थव्यवस्था मूलत: आंतरिक मांग के लिए उत्पादन करती है। अब उच्चवर्ग और उच्च-मध्यवर्ग के घरों में और फार्म हाउसों में गोरी लड़कियां वेटर, मेड, कुक और आया का काम करने के लिए आने लगी हैं। पूर्वी यूरोप की लड़कियां शरीर व्यापार के 21वीं शदी में भारत का लगातार उत्थान हो रहा है। खासकर आर्थिक एवं तकनीकी दृष्टि से लगातार उत्थान हो रहा है। लेकिन नैतिक रूप से पुराने स्थापित मूल्य टूट रहे हैं और नए मूल्यों का जन्म अभी तरल स्थिति में है। संक्रमण काल में भ्रष्टाचार बढ़ रहे हैं। दलाल, ऊँचें दर्जे की कॉल-गर्ल्स और धंधेबाज लोगों का सार्वजनिक जीवन में व्यावहारिक क्ष्प से काफी महत्वपूर्ण भूमिका हो गई है। पश्चिमी समाज विज्ञान एवं अमेरिकी प्रबंधन तंत्र बदली हुई परिस्थिति में पश्चिमी सभ्यता के पतन के कारण बन रहे हैं। इसकी जड़ यूरोपीय आधुनिकता में शुरू से हीं छुपे थे लेकिन उपनिवेशवाद की प्रक्रिया में उनके झूठ और ठगी पर आधारित, अन्याय पर आधारित व्यवस्था को उपनिवेशों के लूट की प्राण वायु का सहारा मिला हुआ था। जैसे हीं लूट का माल आना बंद हुआ यूरोप की हालत खराब होते चली गई। फिर अमेरिका का भी वही हश्र हुआ। 11. भगवान ने ये दुनिया किसी खास व्यक्ति को ध्यान में रखकर तो बनायी नहीं है। यह तो उनकी लीला विस्तार है। फलस्वरूप ज्यादातर लोग, जिनको दुनिया समझ में आती है, वे इसको बदलने में या अपने अनुकूल बनाने में लग जाते हैं। जिनको बदलने की कूबत नहीं होती वे नशा का या धर्म के द्वारा अपने मन को दुनिया से मोड़ लेते हैं। अन्य लोग जोग जो न नशा या धर्म का सहारा लेते हैं और न दुनिया बदलने का कूबत रखते हैं वे मानसिक एवं भावनात्मक रोगों के शिकार हो जाते हैं। यह ब्राहमण एवं क्षत्रिय वर्ण का हाल है। जिनको दुनिया समझ में नहीं आती वे काम या अर्थ के पीछे भागते रहते हैं। ये शुद्र एवं वैश्य वर्ण के लोग हैं। हर युग की एक ऐतिहासिक आत्मा (spirit) होती है। यह ऐतिहासिक आत्मा ईश्वर का ऐतिहासिक इच्छा (will) होती है। इसकी अभिव्यक्ति युग के महान व्यक्तियों एवं बड़ी घटनाओं में होती है। स्वार्थ के आधार पर आप ज्यादा लोगों को आंदोलित नहीं कर सकते। विचार या अवधारणा के आधार पर ही बड़े आंदोलन होते हैं। विश्व व्यापी मंदी ऐसी हीं एक बड़ी घटना है जो पूंजीवादी समाज की अंतर्धारा में एक प्रकार के ऐतिहासिक भूल-सुधार के रूप में आई है। इसने विकसित समाज में लोकप्रियता के मानदंड को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हर दौर में लोकप्रियता के मानदंड बदलते रहते हैं और आवाम की चाहत का केन्द्र भी बदलते रहता है। क्या खरीदने मात्र से किसी चीज का मालिकाना अधिकार मिल जाता है? बेचने वाला मात्र अपनी मजबूरी बेचता है। आत्मा और स्वतंत्र विचार बिकाउ नहीं होते । अपार लोकप्रियता केवल प्रतिभा से नहीं मिलती। कम प्रतिभा भी सामाजिक हालात के कारण भारी लोकप्रियता दिला सकती है। दूसरी ओर कुछ प्रतिभाशाली लोगों को दुनियादारी के अभाव में लगभग अनदेखा ही रहना पड़ता है। वर्तमान सामाजिक हालात में एक देश के रूप में भारत की प्रतिभा को विश्व व्यापी मंदी के बीच रचनात्मक बने रहने के लिए विश्व व्यापी लोकप्रियता दिलायी है । 12. 15वीं शताब्दी में ऑक्सफोर्ड एवं कैंबिज बन गए थे। परन्तु उस वक्त वे ईसाई सेमिनरी थीं। कोपरनिकस , गैलेलियो और न्यूटन के बाद ही पश्चिम में विज्ञान का विकास हुआ। लियोनार्डो दा विंची ने एक बड़ा प्रस्ताव दिया था जिस पर वैज्ञानिक सफलता 20वीं शताब्दी में मिला। केवल विचार से कुछ नहीं होता। एटम यानि अणु एवं परमाणु के बारे में बुद्व और यूनान दोनों को जानकारी थी लेकिन एटम को तोड़ने का तकनीक नहीं था। आधुनिक विश्व का पहला विश्वविद्यालय पोलैंड में 13वीं शताब्दी में बना था।स्पेन को छोड़कर सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी यूरोप के लिए पुनर्जागरण का काल है। लैटिन अमेरिकी धन के कारण स्पेन में आलस्य एवं शिथिलता आ गया था। विश्वात्मा, ऐतिहासिक मोड़ और विचारों के मेल से ही युगान्तकारी परिवर्तन होता है। भारत में औद्योगिक क्रांति और बाजारी कारोबार पक चुका है पर भारत के लिए युगानुकुल गुरूकुल का विकास होना अभी बाकी है। भारत में धर्मसुधार आंदोलन चलाने के लिए माहौल बनने लगा है। इसमे पुरोहितों का प्रशिक्षण एवं मंदिर केन्द्रित सहकारी आंदोलन की भूमिका सर्वोच्च होगी। भारत विश्व ग्राम का नया सरताज बनने की दहलीज पर है।
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