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लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067
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भाजपा की विडंबना
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भाजपा की विडंबना
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सभ्यताएं मूलत: तीन ही हैं। यूरोप की पश्चिमी सभ्यता। चीन की सभ्यता और भारत की सभ्यता। इस्लाम सभ्यता बनने की स्थिति में कभी नहीं था। यह साम्राज्य, राज्य और आंदोलन भर बन पाया। सूफी सिलसिला एक प्रकार का भक्ति आंदोलन था जिसे सुन्नी बादशाहों और खलीफ ने दिल से स्वीकार नहीं किया। पर्सिया, मेसोपोटामियां, बेबीलोलिया और मिस्र की सभ्यता के उपर इस्लामी विचारधारा ने नए साम्राज्य का निर्माण किया जिसके दबाव में पुरानी सभ्यताएं दम तोड़ती रहीं। इस्लाम ने यूरोपीय सभ्यता साम्राज्य के फैलाव को संभव बनाया। इस्लाम ने तीनों सभ्यताओं के बीच पुल और संवाद का निर्माण किया। फलस्वरूप इस्लामी देशों में वैसी सभ्यतामूलक एकता कभी नहीं रही जैसी यूरोप और अमेरिका के देशों में है। पश्चिमी सभ्यता अपना उद्गम यूनान की सभ्यता में मानती है।
सत्यम् शिवम् सुन्दरम् की कल्पना या यूटोपिया मंगलकारी आंनंददायी अवधारणा है। यह प्रकृति के ऋतुचक्र की तरह जागतिक नियम पर आधारित है। एक जागतिक नियम है जिसको यज्ञ विज्ञान या वेद विज्ञान ने पकड़ा है। उसे ही दार्शनिकों या वैज्ञानिकों ने पकड़ने की कोशिश किया है। अपनी अपनी भाषा, अपनी अपनी समझ अपनी अपनी साधना में सभी इसको पकड़ने की कोशिश करते हैं। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद लोक के लिए हैं। एकात्म मानववाद राज्य के लिए है। राज्य का एजेंसी मानववादी ही हो सकता है। सभ्यता या लोक का एजेंसी राष्ट्रवादी ही हो सकता है। इनमें पूरकता है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद संघ की विचारधारा है। एकात्म मानववाद भाजपा की विचारधारा रही है। दुर्भाग्य से भाजपा अपनी विचारधारा से भटक गयी है।
समाज में भी ऐसे स्वप्नदर्शी नेतृत्व का अभाव है। साहित्य और सिनेमा में भी यही हाल है। देश में अभी बहुआयामी संकट की घड़ी है। मध्यवर्ग सुविधा संपन्न आलस्य का शिकार हो गया है। ऐसे में एक बार फिर कॉलेज के छात्र एवं स्कूल के शिक्षकों की निर्णयकारी भूमिका हो सकती है। एक बार फिर सत्ता की चूलें हिलाने का समय आ गया है। एक बार फिर अलख जगाने का समय आ गया है। अंतत: भारत जागेगा। उसकी आत्मा जागेगी। भारत विश्वग्राम के केन्द्र में अपनी भूमिका निभायेगी।
धर्म, राज्य, संस्कृति = ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य। नयी वर्ण व्यवस्था बनानी होगी। नया युग धर्म विकसित करना होगा। तीन प्रोजेक्ट बनाना होगा - पौरोहित्य प्रशिक्षण = धर्म, राजनीतिक प्रशिक्षण = राज्य, सिनेमा प्रोजेक्ट = संस्कृति। वास्तव में गुलामी के दौरान जाति और वर्ण का घालमेल हो गया था। फिर वर्ग और वर्ण का घालमेल हो गया। अधिकार रह गया, कर्त्तव्य छूट गया। पूंजीवाद रह गया, प्रोफेशनल इथिक छूट गया। इससे कार्य संस्कृति भी खराब हुआ और उपभोग संस्कृति भी खराब हुआ। बाजार बढ़ने लगा समाज बिखरने लगा। वर्णसंकरता आयी तो कुसंस्कार बढ़ने लगा। विलासिता बढ़ी तो इसके विरोध में बर्बरता भी बढ़ने लगी। त्याग बढ़ा तो इसके विपरीत दिशा में भोग भी बढ़ने लगा। प्रकृति और संस्कृति के बीच संतुलन से ही समृध्दि और आनंद का पोषण होता है। इनके बीच असंतुलन से बर्बरता और अनाचार बढ़ता है। हिंसा बढ़ती है। असत्य बढ़ता है। अत्यचार बढ़ता है। शोषण बढ़ता है।
अभी जो मंदी बढ़ी है इससे लाभ ही होगा। यह प्रकृति का हस्तक्षेप है। इससे सुधार एवं मितव्ययता बढ़ेगी। इससे दलाली संस्कृति कम होगी। श्रम का महत्व बढ़ेगा। नया नेतृत्व उभरेगा। नई सनातनी दृष्टि फैलेगी। तभी भाजपा बचेगी। विपक्ष में रहना भाजपा के भविष्य के लिए जरूरी है। सनातन धर्म की उन्नति के लिए भाजपा का हारना जरूरी है। ये हारेंगे। बाढ़ का उतना ही महत्व है जितना मंदी का महत्व है। वर्ना मनुष्य नया नाच करने लगता है। प्रकृति का समय समय पर हस्तक्षेप आवश्यक होता है। सिध्दांतत: वीर भोग्या वसुन्धरा में दम है, इसको संस्कृति पर लागू करिए। बेहतर संस्कृति ही कायम रहती है।
सनातन धर्म सर्वोत्तम, संपूर्ण एवं टिकाऊ है। अन्य धर्मों में देह धर्म केन्द्र में है। सनातन धर्म को जानना ही काफी है। जो जान गया वह मानेगा ही। अन्य धर्मों को मनवाना पड़ता है। प्रचार करना पड़ता है। रजस के बिना बेचैनी हो ही नहीं सकता। स्थिति के लिए तमस और गति के लिए रजस जरूरी है। सीमा का अतिक्रमण सतोगुण के बिना संभव नहीं है। दूर दृष्टि के लिए सतोगुणी तपस जरूरी है। हिन्दुवादियों के लिए यह समझना आवश्यक है।
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