Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

भारतीय राजनीति की विसंगतियां

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भारतीय राजनीति की विसंगतियां

 

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(1) कांग्रेस एक पार्टी न होकर एक संस्थान है और विकसित संस्थानों को बड़ी शख्सियतों की जरूरत नहीं होती। उनका सिस्टम काम करता है। किसी भी सिस्टम (व्यवस्था) की परिपक्वता  का सबसे बड़ा प्रमाण उसका विवाद सुलझाने का तरीका होता है साथ ही उत्तराधिकार तय करने की प्रक्रिया। यह उसके सौ साल से ज्यादा लंबे इतिहास का नतीजा है। राजीव गांधी की मौत के बाद नरसिंह राव का चुनाव जिस आसानी से हो गया और जिस तरह से उन्होंने पांच साल सरकार चलाई यह इसका प्रमाण है। राव के बाद सीताराम केसरी का चुनाव भी काफी आसानी से हो गया था। पार्टी तब भी नहीं टूटी थी। तब सोनिया या राहुल नाम का आलाकमान भी नहीं था। जब कांग्रेस को लगने लगा कि केसरी के बस का पार्टी चलाना नहीं तो सोनिया को बड़े सहज और बारीक तरीके से राजनीति में लाया गया। शरद पवार और संगमा ने काफी बाद में पार्टी छोड़ी जब उन्हें लगा कि सोनिया उन्हें वो भाव नहीं दे रही है जो उन्हें मिलना चाहिए। पार्टी तब भी सोनिया के साथ खड़ी थी, जब सोनिया ने तमाम बड़े नेताओं की दावेदारी को ठुकराते हुए मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया। कहीं से कोई शिकायत नहीं, कोई बगावत नहीं, किसी ने पार्टी नहीं छोड़ा। अब पार्टी ने नई करवट लेनी शुरू की है। वो समझ गई है कि मिलीजुली सरकारों की तिकड़म कांग्रेस को सिकोड़ेगी, उसका विस्तार नहीं करेगी। अगर वह सहयोगियों के सहारे खड़ी रहेगी तो पार्टी सिकुड़ते -सिकुड़ते सुख कर ढह जाएगी। पार्टी के फलने - फुलने के लिए जरूरी है कि वो अपने पुराने जनाधार को पाए या फिर नया जनाधार खोजे। पार्टी में खुद को री - इन्वेंट करने के लिए एक सोच तो है और सोच को अमली जामा पहनाने के लिए रणनीति भी लेकिन देखना यह होगा कि उसको किस तरह से एक्जीक्यूट किया जाता है।

(2) जिस तरह Leo saturn ने समाजशास्त्र को भारत में एक open field बना दिया है उसी तरह हिन्दी भाषा और समाज को भी open field बना दिया है। अब हिन्दी में न निर्मल हैं, न विद्यानिवास न धर्मपाल, न राममूर्ति त्रिपाठी और न नामवर। बी. आर. चोपड़ा, शक्ति सामंत के गुजरने, यशराज बैनर, शाहरूख और अक्षय कुमार के युग का भी इस Leo saturn ने पराभव कर दिया। हिन्दी साहित्य, हिन्दी सिनेमा और हिन्दी राजनीति में भूचाल के बाद की चुप्पी है।

(3) रामदेव महराज और इनका भारत स्वाभिमान तथा आर. एस. एस . का नया नेतृत्व कांग्रेस के विरोध में एक नया विमर्श चलाने की कोशिश कर रहे हैं। इनकी भीतरी युगलबंदी कितने दिन चलती है यह देखना है। लेकिन अभी तो राहुल - प्रियंका की नई कांग्रेस और रामदेव महराज के भारत स्वाभिमान के बीच ही स्पर्द्धा दिख रही है। जिस तरह कांग्रेस एक system है, उसी तरह आर. एस. एस. भी एक system है और योगी - संन्यासियों का भी एक साम्प्रदायिक system है। अभी तक खेल बराबरी का है। कागज पर कांग्रेस और भारतवादी हिन्दू दोनों का system बराबर लगता है लेकिन धीरे - धीरे एक का वर्चस्व बढ़ेगा और दूसरे का घटेगा। यदि रामदेव महराज गांधी - जयप्रकाश की भूमिका में आयें तो लोहिया - अंबेडकर से बड़े नेता बन सकते हैं। लेकिन अगर वे सत्ता की राजनीति में खुद सामने आयेंगे तो योगी आदित्यनाथ और चिन्मयानंद हो जाएंगे।

(4) बिहार में बांका (तथा मुजफ्फरपुर) से JD (U) का पराभव हो सकता है। शरद यादव (1974, जबलपुर) की तरह दिग्विजय सिंह (2009, बांका) के रूप में एक नई चिंगारी निकल सकती है। 12.4.09 को जनसत्ता में प्रभाष जोशी के लेख का सबब यही है। यू. पी. में वरून गांधी (पीली भीत) और बिहार में दिग्विजय सिंह नई राजनीति के बीज डाल चुके हैं। राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी स्टार प्रचारक बन चुके हैं। माया, ममता, जयललिता, चन्द्राबाबू, नवीन पटनायक, उध्दव ठाकरे, शिवराज सिंह, अशोक गहलोत, नीतीश कुमार आदि के लिए यह चुनाव निर्णायक होने जा रहा है।

(5) स्वीस बैंकों में पैसा जमा करने की शुरूआत cold war की अमेरिकी नीतियों के तहत global tax heaven के तहत हुई थी। कई छोटे राज्यों में स्वीटजरलैन्ड सबसे महत्वपुर्ण टैक्स हैवेन साबित हुआ। अब उसी अमेरिकी व्यवस्था में cash crunch के कारण हुई stagflation (मंदी) को उबारने के लिए G-20 की अंतिम बैठक में अमेरिका, इंगलैन्ड, एवं जर्मनी जैसे देशों नें दबाव बनाया है कि इन बैंकों में बन्द पैसा निकलना चाहिए। भारत में भी अमेरिकी लॉबी ने इसके लिए हो हल्ला शुरू किया है। रामदेव महाराज और लाल कृष्ण आडवानी भी यही भाषा बोल रहे हैं। यदि यह पैसा भारत आता है तो देशहित में ही है। आम आदमी खुश होगा। इस अर्थ में Leo saturn ने अमेरिकी व्यवस्था की मंदी को आम आदमी के पक्ष में रूपांतरित करना शुरू किया है।

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