Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता

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भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता

 

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 संस्कृति के चार अध्याय श्री रामधारी सिंह 'दिनकर ' की महत्वपूर्ण रचना है। इस पुस्तक की भूमिका पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिखी थी। दिनकर जी की मान्यता है कि भारतीय संस्कृति के निर्माण में आर्य एवं द्रविड भाषा परिवार के लोगों के साथ-साथ मध्यकालीन मुस्लिम संस्कृति एवं आधुनिक अंग्रेजी संस्कृति का भी महत्वपूर्ण योगदान है। आर्य,द्रविड, मुस्लिम और अंग्रेजी प्रभाव को दिनकर जी भारतीय संस्कृति के चार अध्याय मानते हैं। उनकी उपरोक्त मान्यता नेहरू जी की 'भारत की खोज' अथवा डिस्कवरी ऑफ इंडिया से प्रभावित मानी जाती है। प्रस्तुत लेख में भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं की चर्चा की गई है। ये विशेषतायें दिनकर जी की उर्वशी, रश्मिरथी, कुरूक्षेत्र और संस्कृति के चार अध्याय के  अध्ययन  के आधार पर विकसित की गई है। दिनकर जी की रचनाओं में जीवन एवं संस्कृति परिभाषाओं से परे है। जीवन और संस्कृति व्याकरण और छंदशास्त्र के दायरे से बाहर विकसित हुई रचना है। आधुनिक संस्कृति मशीनी संस्कृति है। फिर भी हमें मशीन और उसे संचालित करने वाले मनुष्य की सीमाओं को कभी भी नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। गांधी जी मशीनी सभ्यता से बचने की सलाह यूं ही नहीं देते थे। हमने जीवन को जिस दिशा में गतिशील किया है, उसमें धैर्य और स्थिरांक की संभावना धीरे -धीरे कम हो रही है। औद्योगिक क्रांति और उसके साथ विकसित पूंजीवादी बाजारवाद ने मनुष्य को उसके स्वयं के नियंत्रण में रहने के विकल्प को सीमित किया है। तेजी से निकल भागने की अंधी दौड़ मची हुई है और त्रासदी यह है कि किसी को पता नहीं कि हम भाग क्यों रहे हैं। यदि हम स्थिर होकर इस दौड़ से बाहर भी हो गए तो क्या होगा। इस सवाल का जवाब संस्कृति के दायरे में ही दिया जा सकता है। इसको समझने के लिए भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं को समझना आवश्यक है।

भारतीय संस्कृति मनुष्य के विचारों एवं व्यवहारों के प्रतिमान को इंगित करती है। इसके अंतर्गत मूल्य, विश्वास, आचार संहिता, राजनीतिक प्रतिमान तथा आर्थिक संगठन भी शामिल हैं। संस्कृति के ये तत्व एक पीढी से दूसरी पीढ़ी तक औपचारिक एवं अनौपचारिक प्रक्रियाओं द्वारा हस्तांतरित किए जाते हैं।

संस्कृति समाज के सदस्य के रूप में हमारे विचार और कार्य (चिंतन एवं व्यवहार) के तरीकों का समुच्चय है। फलस्वरूप सामूहिक जीवन की समस्त उपलब्धियों को सम्मिलित रूप से संस्कृति कहा जाता है। लोकप्रिय दृष्टि से, संस्कृति के भौतिक पक्ष जैसे वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों को सभ्यता कहा जाता है एवं समूह की उच्च अभौतिक उपलब्धियों को (जिसमें कला, संगीत, साहित्य, दर्शन, धर्म एवं विज्ञान के सिध्दांत शामिल हैं) विशिष्ट संस्कृति कहा जाता है।

सभ्यता समाज का संगठित पक्ष है जो संस्कृति की दशाओं का निर्माण करती है। संस्कृति इसी सभ्यता रूपी संगठन की उपज है जो भाषा, कला, दर्शन, धर्म, सामाजिक आदतों, प्रथाओं, आर्थिक संगठन एवं राजनीतिक संस्थाओं में अभिव्यक्त होता है।
संस्कृति एक व्यापक शब्द है जिसमें निम्नलिखित बातें सम्मिलित हैं -
1. व्यवहार के प्रतिमान एवं तरीके।
2. उत्पादन की तकनीक एवं प्रौद्योगिकी, सामाजिक संगठन, कला, विज्ञान, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य सेवाओं के प्रोत्साहन के लिए बनी संस्थाएं।
3. बुनियादी मुद्राओं, मूल्यों, विश्वासों, विश्वदृष्टियां इत्यादि जिनकी अभिव्यक्ति कला, संगीत, साहित्य, दर्शन एवं धर्म के माध्यम से होती है।

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