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लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067
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भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता
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भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता
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8. कर्म का सिध्दांत - ज्यादातर भारतीय मानते हैं कि एक व्यक्ति अपने कर्मों के फल भोगने से बच नहीं सकता। सामान्यत: यह विश्वास किया जाता है कि भाग्य का संबंध पुराने कर्मों से है।
9. स्थानीय पंचांग एवं काल चक्र- भारत के हर क्षेत्र एवं भाषा -समूह में स्थान एवं समय को समझने एवं अपने सांस्कृतिक जीवन को गतिशील संतुलन देने के लिए लोक या स्थानीय भाषा में पंचांग का इस्तेमाल किया जाता है। इसका सैध्दांतिक आधार तो भारतीय ज्योतिष विज्ञान है लेकिन व्यवहारिक आधार ऋतु चक्र परिवर्तन की पारंपरिक अनुभूति है। पंचांग एक ओर प्राकृतिक चक्र में परिवर्तन को पारंपरिक माह एवं ऋतु के क्रम में प्रस्तुत करता हैं तो दूसरी ओर सांस्कृतिक चक्र में परिवर्तन को संक्राति, व्रतों एवं त्योंहारों के क्रम में प्रस्तुत करता है। ग्रेगरी कैलेंडर का इस्तेमाल मूल रुप से सरकारी कार्यालय एवं आधुनिक संस्थाओं के कार्य-व्यापार में होता है परंतु धार्मिक, सांस्कृतिक, एवं व्यक्तिगत जीवन में भारतीय लोग अपने समुदाय, क्षेत्र एव भाषा-समूह अथवा संप्रदाय में लोकप्रिय पंचांगों का ही व्यवहार करते हैं। चैत्र(चैत), वैशाख(वैशाख), ज्येष्ठ(जेठ), आषाढ़(अषाढ़), श्रावण(सावन), भाद्रपद(भादो) आश्विन(क्वार), कार्त्तिक(कातिक), मार्गशीर्ष ( अगहन), पौष(पूस), माघ(माघ) फाल्गुन (फागुन) बारह महीनें हैं।अलग अलग पंचांगों में इन्हें अलग अलग नाम से प्रस्तुत किया जाता है। परन्तु हर महीने का प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक महत्व करीब करीब समान ही रहता है । मुख्य रुप से तीन ऋतुएं होती हैं -शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु और वर्षा ऋतु। किन्तु आयुर्वेद में छ: ऋतुओं की चर्चा है-बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त और शिशिर । ग्रीष्म और वर्षा काल के वीच की ऋतु प्रावृट कहलाती है। सामान्यत: चैत्र-वैशाख में बसन्त ऋतु, ज्येष्ठ आषाढ़ में ग्रीष्म ऋतु, सावन-भादो में वर्षा ऋतु, आश्विन कार्तिक में शरद ऋतु, मार्गशीर्ष- पौष में हेमन्त ऋतु एवं माघ-फाल्गुन में शिशिर ऋतु माना जाता है । परन्तु प्रति दिन-रात में भी इन ऋतुओं की अनुभूति होती है । प्रात:काल बसन्त, दोपहर में ग्रीष्म, सन्धया के समय वर्षा, आधी रात में शरद और सूर्योदय से पूर्व बा्रह्म मुहूर्त में हेमन्त ऋतु के लक्षण पाये जाते है । दोपहर वाद प्रावृट ऋतु पाया जाता है ।
10. योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा - भारतीय संस्कृति में योग, धयान, प्राणायाम एवं प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व करीब करीब हर समुदाय, हर क्षेत्र एवं हर भाषा समूह में एक आदर्श के रूप में स्वीकारा जाता है । व्यावहारिक स्तर पर हर व्यक्ति तो योग, धयान या प्राणायाम नही करता परन्तु वह इन्हें करने योग्य आदर्श व्यवहार अवश्य मानता है । दूसरी ओर अधिकांश भारतीय लोग अस्वस्थ होने पर तुरन्त डाक्टर के पास या अस्पताल जाने की बजाय पारंपरिक, घरेलु या प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा ही स्वस्थ होने की कोशिश करते हैं ।
11. नृत्य, गीत एवं संगीत: भारतीय संस्कृति में जीवन की हर दशा दिशा, एवं स्वरूप की अभिव्यक्ति के लिए तदनुरूप नृत्य,गीत एवं संगीत का इस्तेमाल होता है। भारत में शायद ही कोई परिवार, जाति, या समुदाय ऐसा हो जिसमें दुख एवं सुख, सफलता एवं असफलता, जन्म,विवाह एवं मृत्यु, ऋतु परिवर्तन एवं व्यावसायिक उपलब्धियों की अभिव्यक्ति बिना नृत्य, गीत या संगीत के की जाती हो। भारत में संगीत, गीत एवं नृत्य एक ओर मनोरंजन के सर्वप्रमुख माध्यम हैं तो दूसरी ओर जीवन की गहनतम अनुभूतियों एवं अभिव्यक्तियों के भी माध्यम हैं। भारतीय सिनेमा की सफलता, असफलता एवं कलात्मकता में भी गीत, संगीत एवं नृत्य की प्रमुख भूमिका रही है।
12. अनेकता एवं बहुलता - भारतीय संस्कृति में अनेकता या बहुलता को जीवन, विचार तथा प्रथाओं की स्वाभाविक स्थिति माना जाता है। अधिकांश भारतीय मानते हैं कि हर मार्ग, तरीके, प्रथा, परंपरा या पूजा-पध्दति से आत्म-साक्षात्कार एवं ब्रह्म - साक्षात्कार संभव है।
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