Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता

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भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता

 

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 पारंपरिक भारतीय संस्कृति अपने संतुलित दृष्टिकोण एवं लोकमंगल के प्रति अपने सर्वोपरि झुकाव के कारण, सार्वभौमिकता, अन्त्योदय, सर्वोदय, परोपकार, लचीलापन, उदारता, सरलता तथा सादगी जैसे मूल्यों को प्रोत्साहित करती है। भारतीय संस्कृति की कुछ मुख्य विशेषताएँ जो विभिन्न जातियों, जनजातियों, नृजातीय समूहों, धार्मिक समूहों एवं सम्प्रदायों में समान रूप से पायी जाती हैं, निम्नलिखित हैं :-

1. वैश्विक दृष्टि - भारतीय संस्कृति के ढ़ांचे में मानव प्राणी को ईश्वर जनित जगत की अवधारणा के संदर्भ में समझा जाता है। यह दृष्टि मनुष्य केन्द्रित न होकर सृष्टि की सभी सजीव एवं निर्जीव रचना को ईश्वरीय अभिव्यक्ति मानती है। इसलिए, यह ईश्वरीय योजना का सम्मान करती है तथा सह-अस्तित्तव के आदर्श को प्रोत्साहित करती है। यह दृष्टि मनुष्य, प्रकृति तथा ईश्वर को एक ही एकात्मक पूर्णता के आयाम के रूप में संयोजित करती है। यह दृष्टि सत्यं, शिवं, सुन्दरम् के आदर्श में प्रतिबिंबित होती है।
2. सामंजस्य - भारतीय दर्शन तथा संस्कृति आंतरिक सामंजस्य एवं व्यवस्था प्राप्त करने तथा इन सब का पूरे विश्व तक विस्तार करने की कोशिश करती है। भारतीय संस्कृति की मान्यता है कि प्राकृतिक वैश्विक व्यवस्था ही नैतिक तथा सामाजिक व्यवस्था का मार्गदर्शन करती है। आंतरिक सामंजस्य बाहरी सामंजस्य का  आधार है। आंतरिक सामंजस्य के आधार पर स्वाभाविक रूप से बाहरी व्यवस्था तथा सौन्दर्य का विकास होता है। भारतीय संस्कृति भौतिकता एवं आधयात्मिकता के बीच सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करती है। इस सामंजस्य की अभिव्यक्ति 'पुरुषार्थ' की अवधारणा में होती है।
3. सहिष्णुता - भारतीय संस्कृति यथार्थ के बहुआयामी पक्ष को स्वीकार करती है तथा दृष्टिकोणों, व्यवहारों, प्रथाओं एवं संस्थाओं की विविधता का स्वागत करती है। यह एकरूपता के विस्तार के लिए विविधता के दमन की कोशिश नहीं करती। भारतीय संस्कृति का आदर्श-वाक्य अनेकता में एकता एवं एकता में अनेकता दोनों है।
4. कर्त्तव्य पर बल - अधिकार की तुलना में भारतीय संस्कृति  धर्म  या नैतिक कर्त्तव्य पर बल देती है। यह माना जाता है कि अपने अधिकार मांगने की तुलना में अपना कर्त्तव्य निभाना ज्यादा महत्तवपूर्ण है। यह अपने कर्त्तव्य और दूसरों के अधिकार की पूरकता पर बल देती है। इस तरह, सामुदायिक या पारिवारिक कर्त्तव्य पर बल देकर,भारतीय संस्कृति व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता की जगह परस्पर निर्भरता को प्रोत्साहित करती है।
5. आत्मोत्सर्ग एवं बलिदान - भारतीय संस्कृति उन लोगों का सम्मान करती है जो दूसरों के सुख के लिए व्यक्तिगत हितों का बलिदान करते हैं। महर्षियों, संतों तथा सन्यासियों को राजाओं एवं व्यापारियों से हमेशा ऊँचा माना जाता है। संस्कृति नायक के रूप में शहीदों को हमेशा ही राजाओं एवं व्यापारियों से अधिक महत्तव दिया जाता है।
6. निरंतरता के दायरे में परिवर्तन - भारतीय संस्कृति ने हमेशा निरंतरता के दायरे में ही परिवर्तन को पसंद किया है। यह क्रमिक परिवर्तन या सुधार की पक्षधर रही है। यह आकस्मिक या क्षणिक परिवर्तन को प्रोत्साहित नहीं करती है। इसी कारण, अधिकांश वैचारिक परिवर्तन के क्रम में मौलिक चिन्तन में बदलाव के बदले नए और पुराने के बीच समन्वय को वरीयता दी जाती है न कि पुराने को बदल कर नए को स्वीकार करने पर जोर दिया जाता है।

7. संयुक्त परिवार का आदर्श - विवाह के स्तर पर भारत में काफी विविधता है परन्तु परिवार के स्तर पर आश्चर्यजनक समानता है। उदाहरण के लिए संयुक्त परिवार का आदर्श या मूल्य करीब-करीब सभी भारतीय स्वीकार करते हैं। सभी व्यक्ति एक संयुक्त निवास स्थान में रहें यह आवश्यक नहीं है। लेकिन संयुक्त परिवार का आदर्श कायम रहता है। संयुक्त परिवार को भारतीय संस्कृति की पारिभाषिक विशेषता माना जाता है। भारतीय लोग व्यक्तिगत पहचान एवं पारिवारिक पहचान में अंतर करते हैं।

 

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