गांधी एवं नेहरू : एक नई दृष्टि
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गांधी एक वैष्णव भक्त एवं संत थे। वे मुक्तिकामी थे। संन्यासियों एवं भक्तों की राजनीति में सीमित भूमिका होती है। उनके पास तंत्र नहीं था। तंत्र होता तो उनकी हत्या नहीं हो सकती थी। हत्या करने वालों को गांधी को देखते ही पसीना छूट जाता। कौटिल्य के पास तंत्र था। रामकृष्ण परमहंस और श्री अरविन्दों के पास भी तंत्र था। तंत्र यानि त्रिक। त्रिक यानि शक्ति के मंगलकारी सृजन का तकनीक। ईसाइयों के पास व्यवस्थित तंत्र नहीं है। उनके यहां कहीं का ईंट और कहीं का रोड़ा है। उन लोगों ने अलग - अलग जगहों से अलग - अलग चीज अपनी सुविधानुसार लिया है। यहूदी धर्म एवं इस्लाम में तंत्र अवश्य है। परन्तु यह सूर्य से पृथ्वी की ओर जाने वाला तंत्र है। यह अवैदिक तंत्र है। यह भौतिक तंत्र है। मदन मोहन मालवीय भागवत पुरूष थे। गायत्री की साधना करते थे। गीता के कर्मवाद के उपासक थे। उनकी कामना न मोक्ष की थी और न राज्य की थी। उनकी कामना समाज के दुख को दूर करने की थी। मदन मोहन मालवीय को कमजोर करने के लिए अंग्रेजों ने मोतीलाल नेहरू को खड़ा किया था। मोतीलाल नेहरू गायत्री की साधना करते थे। बाद में काश्मीर चले गए थे। उनके बड़े भाई बंशीधर नेहरू प्रकांड ज्योतिषी थे। मोतीलाल ने ही जवाहरलाल को गांधी के साथ लगाया था। नियति भी यही चाहती थी। मालवीय महापुरूष थे। उनके भाषण एवं लेख अभिभूत करते हैं। परन्तु मालवीय अपने युग की उपज थे। आज उनका ऐतिहासिक महत्व है। हमारे युग के लिए उपयुक्त वर्णव्यवस्था तैयार करना होगा। युगानुकूल याज्ञिक व्यवस्था देनी होगी। पहले संस्कृति बदलेगी। फिर शिक्षा बदलेगी। तभी राजनीति बदलेगी। अर्थनीति उसके बाद बदलेगी। व्यवस्था बदलना इतना आसान नहीं है। जब तक यह सब नहीं होगा आधुनिक यूरोपीय व्यवस्था भारत में चलती रहेगी। गांधी का आचार - विचार वैष्णव था। उन्होंने अपने युग के मनीषियों का विश्वास प्राप्त किया था। उनको, संत हृदय होने के नाते, जनता के साथ तादात्म्य स्थापित था। अपने समय के विश्लेषण में वे काफी हद तक सफल थे। लेकिन उनके पास वैकल्पिक व्यवस्था नहीं थी। वे त्रिकालदर्शी नहीं थे। परन्तु उन्होंने नेहरू को सोच समझ कर उत्तराधिकारी चुना। चूंकि गांधी जी सिध्द तांत्रिक नहीं थे अत: उनके नहीं चाहने के बावजूद देश का बंटवारा हुआ और भारत ने विकास का आधुनिक यूरोप वाला रास्ता चुना। उनके अनुयायी भी इसीलिए भटक गए। लोग उनके व्यक्तित्व से प्रभावित थे। गांधी जी एक पारंपरिक व्यक्ति थे और आधुनिक राष्ट्र - राज्य के बारे में न कोई सुपरिभाषित मंजिल थी और न कोई बना - बनाया रास्ता था। वे केवल व्यक्तिगत मुक्ति के लिए भक्ति मार्ग के पथिक थे जबकि उनके अनुयायी उनको सिध्द महात्मा मानते थे। अत: उनके जाने के बाद सब कुछ बिखर गया। राष्ट्र निर्माण संतों और योगियों का काम नहीं है। यह ऋषियों, तांत्रिकों और प्रशिक्षित क्षत्रियों का काम है। युगानुकूल तंत्र के अभाव में आधुनिक विज्ञान, तकनीक एवं व्यवस्था जारी रहेगी। कोई भी देश बिना विज्ञान, तकनीक एवं व्यवस्था के नहीं रह सकता। व्यवस्था का विकल्प व्यवस्था ही हो सकती है। विज्ञान एवं तकनीक का विकल्प विज्ञान एवं तकनीक ही हो सकता है। गांधी जी ने सभ्यतामूलक विमर्श चलाया था उनके पास आधुनिक राष्ट्र - निर्माण का एजेन्डा या मेनिफेस्टो नहीं था। नेहरू के पीछे काश्मीर शैव तंत्र से जुड़े लोग थे। 1945 के बाद नेहरू और माउन्ट बेटन की युगलबंदी से काफी कुछ तय हुआ था।
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