Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

गांधी एवं नेहरू : एक नई दृष्टि

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गांधी एवं नेहरू : एक नई दृष्टि

 

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   जिस तरह चीन के समकालीन विकास में माओ की एक भूमिका थी उसी तरह भारत के समकालीन विकास में नेहरू की एक भूमिका थी। नेहरू ने भारत को अमेरिका के रास्ते पर जाने से बचाया। भले ही नेहरू आत्म - सजग नहीं थे लेकिन गांधी की तरह वे भी नियति के ही चुने हुए औजार थे। नेहरू नियति की इच्छा के विरूध्द गांधी द्वारा नहीं चुने गए थे। गांधी के पास नेहरू से बेहतर विकल्प कागज पर दिखता अवश्य है परन्तु भारतीय समाज को उस वक्त नेहरू की जरूरत थी। नेहरू ने स्थिरता दी। प्रजातांत्रिक मूल्यों का देशीकरण किया और मिश्रित अर्थव्यवस्था अपना कर आधुनिक विकास का मध्यम मार्ग चुना। एक देश के रूप में भारत की उस वक्त जैसी तैयारी थी उसमें नेहरू स्वाभाविक नेता के रूप में सामने आये। गांधी इस बात को सहज संत होने के नाते जानते थे। गांधी - नेहरू पत्राचार से भी यह स्पष्ट होता है कि गांधी नेहरू के विचार और स्वभाव को भली भांति समझते थे। उन्होंने नेहरू को अपना उत्तराधिकारी देश को स्थिरता और प्रजातांत्रिक मूल्य नहीं दे पायेंगे। वे जानते थे कि देश   अभी गांधीवादी प्रयोगों के लिए तैयार नहीं है। वे जानते थे कि उनके प्रयोगों को ईश्वरीय पुष्टि नहीं मिली है। अभी उनके प्रयोग परम्परा के वाहक बनने के लिए कई परीक्षणों से गुजरेंगे। वे जानते थे कि उनके प्रयोगों की तरह उनके अनुयायी भी कच्चे हैं। अत: उन्होंने यथास्थितिवादी नेहरू को अपना उत्तराधिकारी चुना। कांग्रेस वर्किंग कमिटि के 20 में से 18 सदस्य पटेल के पक्ष में थे। नेहरू को गांधी के वीटो ने प्रधानमंत्री बनवाया। जिस तरह चीन की स्थिरता एवं विकास में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की महत्वपूर्ण भूमिका है, उसी प्रकार भारत की स्थिरता एवं विकास में गांधी - नेहरू की कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गांधी और नेहरू एक - दूसरे के पूरक थे। गांधी में रजस प्रधान तत्व था। दोनों भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की सभ्यतामूलक विमर्श की विसंगतियों का भी प्रतिनिधित्व करते थे।
गांधी और नेहरू में एक समानता थी। दोनों भारत को हिन्दू राष्ट्र की जगह पंथ निरपेक्ष (सेक्युलर) राष्ट्र बनाना चाहते थे। इन दोनों की नजर में पाकिस्तान के लोग मुस्लिम राष्ट्र बना कर गलती कर रहे थे। हमें वह गलती नहीं दुहरानी चाहिए। भारतीय सभ्यता में शुरू से ही राज्य पंथ निरपेक्ष होते रहे हैं। हिन्दू महासभा के लोग हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते थे। लेकिन भारत के बहुसंख्यक लोग गांधी - नेहरू के साथ थे। नेहरू की दृष्टि में गांव शहरों पर निर्भर थे अत: नेहरू ने शहरों को विकसित करने पर जोर दिया। गांधी की दृष्टि में शहर गांवों पर निर्भर थे अत: गांवों के विकास के बिना शहरों के विकास का कोई मतलब नहीं था। महात्मा गांधी के अनुसार देश को असली आजादी तभी मिलेगी, जब किसान का पेट भरा होगा और देश स्वावलंबी होगा।
हिन्दुओं में अग्नि स्वर्ग तक पहुंचने का रास्ता है लेकिन इस्लाम में अग्नि नरक में पाई जाने वाली चीज है। हिन्दुओं में मोक्ष आत्मा और परमात्मा का मिलन है जबकि मुसलमानों में आत्मा और परमात्मा का मिलन असंभव है। मुसलमानों में स्वर्ग सांसारिक सुखों से भरपूर एक जगह है जहां आत्मा को 'मोक्ष' मिलता है। 'मोक्ष' यानि आनंद। जबकि नरक में दुख मिलता है।
उपरोक्त दृष्टि से हिन्दुओं और मुसलमानों में मेल होना संभव नहीं है। परन्तु रामकृष्ण परमहंस इस्लाम को भी ईश्वर तक पहुंचने का एक विधिवत रास्ता मानते थे। उन्होंने इस्लामी दृष्टि से भी साधना की थी। रामकृष्ण  इस्लाम को समझने का एक नया रास्ता खोल रहे थे। दरअसल केवल कुराण के आधार पर इस्लामिक साधना को पूरी तरह नहीं समझा जा सकता। जिस तरह विधर्मी लोग वेद को पढ़ कर वैदिक धर्म को नहीं समझ सकते, उसी प्रकार हिन्दू लोग कुराण को एक किताब के रूप में पढ़कर इस्लामिक साधना को नहीं समझ सकते। इस्लाम में भी एक से बढ़कर एक साधक हुए हैं। खासकर सूफियों में हिन्दू शैवागम का बहुत प्रभाव पाया जाता है। नमाज शब्द नम: शब्द से बना है। हिन्दुओं के सिध्द स्थानों पर मुस्लिम फकीरों एवं सूफी संतों ने साधना किया है और बाद में इन सिध्द स्थानों पर मस्जिद या मजार बना दिए गये।

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