Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

कुजात गांधीवादी लोहिया

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कुजात गांधीवादी लोहिया

 

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 तेजस्विता लाने की कोशिश करना जरूरी है। मर्यादा के मुताबिक परिवर्तन करना, अपनी जनता को प्राणवान बनाना, जाति प्रथा को खत्म करना, ब्रहम ज्ञान पाने की कोशिश करना जरूरी है। तेजस्विता लाने का एक सबसे बड़ा तरीका है हिन्दुस्तानी या हिन्दी भाषा का राष्ट्रभाषा के रूप में विकास करना। अंग्रेजी भाषा भारतीय संदर्भ में एक सामंती भाषा है। उसे इस देश से बाहर करना चाहिए। अंग्रेजी भाषा नहीं है बल्कि हमारी गुलामी का, हमारी जड़ता का प्रतीक है। अंग्रेजी की जगह हिन्दुस्तानी हिन्दी को प्रतिष्ठित किए बिना हम प्राणवान देश हो ही नहीं सकते। हिन्दी का प्रचार बंद करो, हिन्दी का जो रचनात्मक काम है वह करो। जो लोग हिन्दी नहीं जानते, उनको या उनके बच्चों को हिन्दी पढ़ाने के लिए स्कूल चलाओ। आज पैसा, इज्जत और शान अंग्रेजी में है। नौकरी पाने की संभावना अंग्रेजीदां को ज्यादा है। देश की सरकार और बड़े उद्योगपति अंग्रेजी में अपना काम करते हैं। लेकिन प्रतीकात्मक रूप से हिन्दी के प्रचार पर दो-चार करोड़ खर्च करके पल्ला झाड़ लिया जाता है। हिन्दी तो तब प्रतिष्ठित होगी जब अंग्रेजी हिन्दुस्तान के लिए हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। हम अंग्रेजी के बगल में हिन्दी को नहीं बैठा सकते। हम हिन्दी के बगल में हिन्दुस्तान की अन्य भाषाओं को अवश्य बैठा सकते हैं। इस तरह हम देखते हैं कि लोहिया के विचार महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर एवं विनोबा भावे के विचारों का रचनात्मक विस्तार हैं और जवाहरलाल नेहरू की पश्चिम परस्त, अंग्रेजी परस्त, सामंतवादी राजनीति एवं विचार के खिलाफ थे। लोहिया का गैर-कांग्रेसवाद नेहरू की अधिनायकवादी राजनीति के खिलाफ तो था ही, उनकी डिस्कवरी ऑफ इंडिया में वर्णित पाश्चात्य दृष्टि से भारत को देखने के भी खिलाफ था। वे गांधी के हिन्द स्वराज को ही अपने समय की भाषा में
व्याख्याचित कर रहे थे। चूंकि जवाहरलाल अपने को गांधीवादी कहते थे अत: व्यंग से लोहिया खुद को कुजात गांधीवादी कहते थे। 1991 से भारत उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों पर चल रहा है। आज भारत का प्रभुवर्ग नेहरू की तुलना में ज्यादा पश्चिम परस्त है। डा0 मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल में अंग्रेजी राज की बरकत के गीत ईंग्लैड प्रवास में गाकर आ चुके हैं। गैर-कांग्रेसवाद का समाजवादी आंदोलन राजनीतिक रूप से छिन्न-भिन्न हो चुका है लेकिन आज लोहिया के विचारों की प्रासंगिकता उनके जीवन काल से भी ज्यादा हो गई है। एक ऐसे समय में जब नेहरूवादी, अंबेदकरवादी, हिन्दुत्ववादी और मार्क्सवादी सभी उदारीकरण और वैश्वीकरण के चारण बन चुके हैं भारत की सांस्कृतिक अस्मिता और आम आदमी के कुशल क्षेम के लिए गांधी और लोहिया की परंपरा हमारा एकमात्र संबल है।                
गांधी ने भक्ति आंदोलन और सिक्ख धर्म को पचा कर अपना सर्वोदय आंदोलन चलाया था। सिक्ख धर्म सनातन धर्म के अंर्तगत एक प्रकार का सुधारवादी आंदोलन था जिसका लक्ष्य सनातन धर्म में कार्य संस्कृति का सुधार था। नानक का अध्यात्मिक वंश चला। गुरू गोविंद सिंह को भी बंदा बहादुर मिल गए। मास्टर तारा सिंह मिल गए। बीच में रणजीत सिंह मिल गए। लेकिन गांधी और अकबर का अध्यात्मिक वंश (सम्प्रदाय/गुरूकुल) नहीं चला। उनके सर्वोदय का वही हाल हुआ जो अकबर के दीन-ए-इलाही का हुआ था। इनका जन आंदोलन के रूप में प्रचलन नहीं हो पाया। खासकर गांधी और अकबर के जाने के बाद एक प्रतिष्ठित अभिजात विमर्श में प्रतीकात्मक रूप से इसकी चर्चा होती रही। अकबर की बादशाहत चली। स्वतंत्रता आंदोलन को गांधी ने जन आंदोलन बनाया लेकिन न अकबर का दीन-ए-इलाही चला और न महात्मा गांधी का सर्वोदय चला। दोनों का बाद की पीढ़ी में काफी हद तक सहयोजन या को-ऑप्सन हो गया।

 

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