कुजात गांधीवादी लोहिया
पेज 5 अपनी सारी सीमाओ के बावजूद लोहिया ने गांधी की राजनीति के मूल तत्वों को नेहरू के मुकाबले या राजगोपालाचारी के मुकाबले ज्यादा गंभीरता से चलाना चाहा। इसमें लोहिया को भी आंशिक सफलता ही मिली। लोहिया का भी राजनीतिक वंश नहीं चल पाया। लोहिया के अनुयायी भी गांधी के अनुयायियों की तरह अवसरवादी निकले। चीन में माओ और देंग ने चीनी अस्मिता और भाषा को बचाये रखकर चीन का विकास किया। रूस में स्तालिन और पुतिन ने रूसी अस्मिता और भाषा को बचाये रखकर रूस का विकास किया। स्तालिन और माओ को फाउन्डेशन बनाना था। इनसे ज्यादतियां हुईं। लेकिन बिना माओ के फाउन्डेशन के देंग को सफलता मिलना संभव नहीं था। बिना स्टालिन के फाउन्डेशन के पुतिन को सफलता मिलना संभव नहीं था। स्टालिन और माओ ने अमेरिकी वर्चस्व के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपनी सांस्कृतिक अस्मिता बनाये रखा। भारत अमेरिका की तरह सेटलमेंट कॉलोनी नहीं था कि अंग्रेजी भाषा और संस्कृति लाद दी जाती। आज भी अंग्रेजी भाषी लोग भारत में बहुसंख्यक नहीं हैं। भारत में उदारीकरण चीन की तरह भी नहीं चल सकता। भारत में बहुदलीय प्रजातंत्र और सांस्कृतिक विविधता है। शिक्षा, शोध, चिकित्सा, दवा उद्योग और सैन्य उपकरणों का विश्व ग्राम के लिए उत्पादन भारत में होना चाहिए यह पांचों ज्ञान से संबंधित उद्योग हैं। आई. टी. उद्योग की तरह इनको भी भारत में शिफ्ट होने का ऐतिहासिक अवसर उपलब्ध है। जरूरत है विजनरी नेतृत्व की। सितम्बर 2009 कांग्रेस पार्टी एवं यू.पी.ए. सरकार के लिए अच्छी सूचना लेकर नहीं आया है। राजशेखर रेड्डी की मृत्यु, गुजरात, यू.पी., मध्यप्रदेश, दिल्ली और बिहार के उपचुनाव के परिणाम कांग्रेस तथा सरकार के लिए अच्छी खबर नहीं हैं। 2014 में कांग्रेस को हराया जा सकता है। इसमें भाजपा की भूमिका गौण होगी। यह गैरकांग्रेसी गठबंधन की सरकार होगी। इसके लिए सांस्कृतिक आंदोलन की भूमि तैयार करने में गांधी और लोहिया खाद और पानी का काम कर सकते हैं। संस्कृति का काम आम आदमी को जीवन और जगत के मूल प्रश्नों की अकुलाहट से बचा कर जिंदगी की जहोजहद को प्रासंगिक बनाये रखने का होता है। लोहिया ने संस्कृति के इस महत्व को स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी के प्रयोगों से सीखा था और अपनी समझ से इसमें परिष्कार किया था।
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