पैगम्बर मुहम्मद, कार्ल मार्क्स एवं महात्मा गांधी
पेज 4 यह समस्या का मात्र रूपांतरण है। जेहादी इस्लाम इस्लाम की तुलना में आधुनिकता के ज्यादा नजदीक है। माओवादी मार्क्सवादी विमर्श के दायरे से बहुत ज्यादा भटक चुके हैं। ऐसे भी एक विचारधारा के रूप में मार्क्सवाद पूंजीवादी प्रजातंत्र से पूरी तरह हार चुका है। मार्क्सवाद का अब मात्र सीमित उपयोग है। यह पूंजीवादी व्यवस्था के उद्भव और विकास के ठीक तरीके से समझने में हमारी मदद कर सकता है। मार्क्स कर पुस्तक कैपिटल से पूंजीवादी प्रजातंत्र को विश्लेषित करने में आज भी बहुत मदद मिल सकती है। रश्किन की पुस्तक अनटू दिस लास्ट के गुजराती अनुवाद सर्वोदय में गांधी जी पूंजीवादी व्यवस्था की अति संक्षिप्त आलोचना करते हैं। आज के संदर्भ में पूंजीवादी प्रजातंत्र को समझने में वह र्प्याप्त नहीं है। इरिक हॉब्सबॉम की मार्क्सवादी पुस्तकें आधुनिक व्यवस्था के उद्भव और विकास की व्यवस्थित ऐतिहासिक विश्लेषण करती हैं। मार्क्सवादी इतिहासकार ए. एल. बैसम की पुस्तक द वन्डर दैट इज इंडिया आज भी भारतीय समाज को समझने में मदद करती है। एक विश्लेषण पद्भति के रूप में मार्क्सवाद आज भी काम की चीज है। एक जीवंत परंपरा के रूप् में इस्लाम आज भी जिन्दा है। गांधीवादी दृष्टि के साथ इनका गंठजोड़ हो सकता है। इस गंठजोड़ से विश्व की अधिकांश समस्या का समाधान हो सकता है। 1.युगानुकूल पाठशाला 2.समाज आधारित सहकारी आंदोलन 3.पार्टी-गांधीवादी पार्टी वहाबी इस्लाम मानने वाले मुसलमान इस्लामिक जगत में अल्पसंख्यक हैं। ये लोग उपरोक्त विचारधारा का समर्थन नहीं करेंगे। पाकिस्तान में करीब 11000 मदरसों से हर साल पांच लाख युवा ग्रेजुएट बाहर आते हैं। जिनमें से पाकिस्तान में हर साल दस हजार जेहादी तैयार हो रहे हैं। इसके पीछे वे मदरसे हैं जो वहाबी इस्लाम के प्रभाव में जेहाद की राह दिखा रहे हैं। पाक सेना का ध्येय वाक्य है-अल्लाह की बताई राह पर चलना और जेहाद करना। सेना की ट्रेनिंग के दौरान भी जेहादपर सेना का मैन्युल 'द कुरानिक कॉन्सेप्ट ऑफ वार' पढ़ाया जाता है। पाकिस्तानी जेहादी मानते हैं कि अमेरिका, भारत और इजरायल जैसे इस्लाम के दुश्मन इस्लाम की सरहदों को सीमित करने में लगे हैं। वे पाकिस्तान के परमाणु हथियार को छीनने के लिए युध्द छेड़े हुए हैं जो मुस्लम जगत की रक्षा का मुख्य साधन है। इस परिस्थिति में भारत में इस्लाम की पारम्परिक छवि को पुख्ता करने की जरूरत है। महात्मा गांधी ने अपने समय में ऐसी कोशिश की थी और उनको खान अब्दुल गफ्फार खान एवं मौलाना आजाद का समर्थन मिला था।
विश्व अर्थव्यवस्था, आवारा पूंजी और यूरोपीय समाज
|