हिन्दी सिनेमा की प्रमुख प्रवृत्तियां
पेज 2 मनोज कुमार और ताराचंद बडजात्या, शक्ति सामंत और ऋषिकेश में से थे। अभी आशुतोष गोवरिकर, विपुल शाह और राजकुमार हीरानी सबसे महत्वपूर्ण है। 1990 के दशक में सूरज बडजात्या, आदित्य चोपड़ा और मंसूर खान सबसे महत्वपूर्ण थे। मणिरत्नम, राकेश रोशन, रामगोपाल वर्मा, भंसाली और प्रियदर्शन भी महत्वपूर्ण फिल्मकार हैं। इसी तरह बंगाल के फिल्मकार हिन्दी सिनेमा की वैकल्पिक धारा के प्रतिनिधी रहे हैं। उदाहरण के लिए देबकी बोस ने अपने संगीतकार आर. सी. बोराल को साफ -साफ कहा कि वे हिन्दी फिल्मों में रबीन्द्र संगीत का प्रयोग भी करें। इसी परम्परा में पनपे हेमंत कुमार और सलिल चौधरी ने रबीन्द्र संगीत को मुंबई फिल्म उद्योग में पहुंचा दिया। लोकप्रिय हिन्दी सिनेमा में लगभग सारे अंचलों के प्रभाव को स्वीकार किया गया है और इसकी हमेशा से शर्त रही है बॉक्स ऑफिस पर सफलता। खुशहाल भारत की तस्वीर में पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत की छवि प्रस्तुत् करना सविधाजनक भी है और यह बॉक्स ऑफिस पर भी खरा है। फिल्मों में यथार्थ के बदले हमेशा लोकप्रिय अवधारणाएं ही प्रस्तुत् की जाती रही हैं। हॉलीवुड भी अमेरिका को प्रस्तुत् नहीं करता बल्कि अमेरिका की लोकप्रिय छवि को प्रस्तुत् करता है। और यह 'लोकप्रिय छवि' एक सामाजिक या फेनोफेनल निर्माण है जिसे कलाकार और लेखक एक कैनन के आधार पर स्टीरियोटाइप के रूप में गढ़ते हैं। बी. आर. चोपड़ा के विपरीत यश चोपड़ा ने ज्यादा स्विटजरलैंड को प्रस्तुत् किया है। बी. आर. चोपड़ा और लेखक निदर्शक के रूप में आदित्य चोपड़ा मध्यमार्ग वाले बाउन्उ स्क्रिप्ट वाले, आर्यसमाजी स्क्रिप्ट के सामाजिक आदर्श को महत्व देने उपरोक्त तीसरे वर्ग में आते हैं। दूसरी ओर निर्देशक यश चोपड़ा और निर्माता आदित्य चोपड़ा प्रथम वर्ग के मांइडलेस सिनेमा के लोकप्रिय फिल्माकार हैं। नया दौर, धर्मपुत्र, वक्त, दिलवाले दुल्हनियां ये जाएंगे और वीरजारा में पंजाबियत है। बी. आर. चोपड़ा एवं आदित्य चोपड़ा से अलग यश चोपड़ा की जो फिल्में हैं वे मांइडलेस सिनेमा की फार्मूला फिल्में हैं। इनमें ज्यादातर असफल रही हैं। यश चोपड़ा की अधिकांश सफल फिल्मों की सफलता के अन्य दावेदारों का महत्व सर्वविदित है। उसमें यश चोपड़ा की रचनात्मक भूमिका गौणमानी जाती रही है। माना जाता है कि वे व्यावसायिक समझौतों को आसानी से स्वीकार कर सफलता का सेहरा पाते रहे हैं। वे भाग्यशाली तो हैं लेकिन उन्हें भारतीय सिनेमा के श्लाकापुरूषों में अपने बड़े भाई एवं बेटे के साथ अक्सर शामिल नहीं किया जाता। इसके बावजूद यश चोपड़ा और देवआनंद या प्राण के लंबे अनुभव को दरकिनार करके लोकप्रिय हिन्दी सिनेमा की बात नहीं की जा सकती।
|