Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

हिन्दी सिनेमा की प्रमुख प्रवृत्तियां

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हिन्दी सिनेमा की प्रमुख प्रवृत्तियां

 

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हिन्दी सिनेमा के दर्शकों की मानसिकता समझने की भी आवश्कता है। हिन्दी सिनेमा के समकालीन दर्शकों की पसन्द में विविधता है। उदाहरण के लिए 2008 में प्रदर्शित फिल्म बचना ए हसीनों में कुछ युवा दर्शकों को प्रायश्चित करता हुआ नायक हजम नहीं हो रहा है। हमने समाज में आनंद और उत्सव का विराट भ्रम खड़ा किया है और इसमें प्रायश्चित करता हुआ नायक इन्हें यथार्थ का स्मरण कराता है जिसके कारण इनका यूफोरिया (स्वस्थ होने का भ्रम) टूटता है। वीरजारा - युवा वर्ग को नायक के 20 वर्ष की सजा हजम नहीं हुई गोयाकि उनकी इच्छा थी कि नायक और नायिका जवानी या अधेड़ अवस्था में ही मिल जाते तो बेहतर था। दरअसल पश्चिम परस्थ युवा - पीढ़ी का देहेतर प्रेम में विश्वास नहीं है। प्रेम और यौन संबंध की भारतीय परिभाषा से इनका लगाव कम ही है। परंतु विवाह और मुन्नाभाई श्रृंखला की फिल्मों की सफलता चौंकाती है। तीसरी कसम, मेरा नाम जोकर, सूरज का सातवां घोड़ा, ओमकारा की तुलना में विवाह ज्यादा सफल थी। हम आपके हैं कौन ज्यादा सफल थी। एक दूजे के लिए, हीरो, लवस्टोरी, बेताब, पहेली, विवाह, कयामत से कयामत तक, जब वी मेट, ओमशांति ओम (कर्ज), सिंह इज किंग, रेस की तुलना करने पर अंतर्विरोधी निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। वास्तव में एक सफल या अच्छी फिल्म से भारतीय दर्शक क्या चाहता है? एक भारतीय दर्शक क्या एक खास तरह की अपेक्षा लेकर फिल्म देखने जाता है?
बचना ए हसीनों ऐ सार्थक प्रेम कथा है। यह औसत से सफल फिल्म है। लेकिन इसे बॉक्स ऑफिस हिट तो नहीं कहा जा सकता। प्रेम, वासना और प्रायश्चित को रेखांकित करने वाली फिल्म का नाम बचना ए हसीनों उपयुक्त है क्या? इसमें बिपाशा को ''प्रेम में धोखा खाने के बाद एक विकल्प के रूप में सफलता अर्जित करने का जुनून सवार हो गया था। आज की युवा पीढ़ी सफलता अर्जित करना चाहती है और उनक इसी जुनून का एक हिस्सा प्रेम भी हो गया है।''

 

 

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