भारतीय संस्कृति में शिक्षा: परम्परा एवं चुनौतियां
पेज 4 स्वतंत्र भारत में शिक्षा महात्मा गाँधी अंग्रेजी शिक्षा में अन्तर्निहित अभिजात्यवाद एवं भारतीय संदर्भ में इसकी अप्रासंगिकता की आलोचना करते थे। उनका मानना था कि अंग्रेजी शिक्षा बच्चों के सर्वांगीण विकास में बाधक है तथा यह भारत में अंग्रेजी पढ़े लिखे कुछ लोग और इस शिक्षा से वंचित बहुसंख्यक लोगों की संस्कृति में दूरी पैदा करती है। वह अपने ही देश में शिक्षित लोगों को अजनबी बनाती है। अत: गाँधीजी इस शिक्षा को 'बौध्दिक शगल' कह कर इसकी आलोचना करते गाँधीजी ने स्वतंत्र भारत के लिए 'बुनियादी शिक्षा' या 'नई तालीम' के नाम से शिक्षा का एक नया प्रारूप तैयार किया। इसमें ज्ञान प्राप्ति के व्यवहारिक तरीकों पर ज्यादा जोर था। नई तालीम के द्वारा गाँधीजी हर गाँव, समुदाय तथा संपूर्ण देश को आत्म-निर्भर बनाना चाहते थे। नई तालीम के द्वारा वे सामाजिक एवं आर्थिक रूप से सृजनकारी कौशलों जैसे सूत कातना, कपड़ा बुनना, बढ़ईगिरी, कुम्भकारी तथा पशुपालन आदि का प्रशिक्षण विद्यार्थियों को देने के पक्ष में थे। गाँधीजी हस्तशिल्प को विद्यार्थियों के विचारों को व्यवहार से जोड़ने का एक साधन मानते थे जिससे उनमें अधययन के प्रति जिज्ञासा और उत्साह जागृत किया जा सकता था। सात वर्षों तक नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान, प्रशिक्षण का माधयम मातृ-भाषा, शिक्षा का शारीरिक प्रशिक्षण, शिल्प, व्यवसाय एवं उत्पाद कार्य से जुड़ा होना तथा शिक्षा व्यवस्था का स्वावलंबी होना बुनियादी शिक्षा के मुख्य उद्देश्य थे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि गाँधीजी की योजना क्रियान्वित नहीं हो सकी। रवीन्द्रनाथ टैगोर भी उपनिवेशवादी शिक्षा के आलोचक थे। इसके विदेशी चरित्र, दैनिक जीवन की लय से दूरी एवं प्रशिक्षण के माधयम के रूप में अंग्रेजी भाषा का उपयोग उन्हें स्वीकार्य नहीं था। इसके विपरीत वे विद्यार्थी केन्द्रित सर्वांगीण शिक्षा का प्राचीन गुरूकुलों वाले प्रतिमान का ही समर्थन करते थे। गाँधीजी एवं टैगोर की तुलना में, भारत के प्रथम प्रञनमंत्री नेहरु आधुनिक शिक्षा के पक्षघर थे। वे आधुनिक भारत में शिक्षा को औद्योगिक, तकनीकी, वैज्ञानिक तथा प्रजातांत्रिक विकास के शक्तिशाली वाहक बनाना चाहते थे। उन्होंने इस दृष्टि से शिक्षा को नियोजित करने के लिए 'राधाकृष्णन कमीशन' की स्थापना की। इस कमीशन (1948-49) का केन्द्रीय लक्ष्य भारतीय संविधान के मूल उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए शिक्षा के द्वारा उपाय एवं साधन प्रस्तावित करना था। इस कमीशन ने विकास के दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी आयामों की प्रस्तावना की। संविधान में अंतर्निहित मूल्यों की प्राप्ति के लिए इस कमीशन ने विज्ञान और तकनीक के अधययन पर विशेष बल दिया। ग्रामीण पुनर्निर्माण में मदद देने के लिए इसने ग्रामीण विश्वविद्यालयों की स्थापना की प्रस्तावना की। इस कमीशन ने उच्च शिक्षा पर अधिक बल दिया।
|